26 नवंबर, 2008 को भारत ने आतंक का भयावह रूप देखा था, जब पाकिस्तान में मौजूद जिहादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 लोगों ने मुंबई के ताज होटल पर हमला कर दिया था और 4 दिनों में 12 हमलों को अंजाम दिया था. ताजमहल पैलेस होटल, नरीमन हाउस, मेट्रो सिनेमा और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस सहित अन्य स्थानों पर हुए हमलों में 15 देशों के 166 लोग मारे गए थे.साल 2008 के नवंबर में हुए मुंबई हमले को 26/11 के नाम से भी जाना जाता है. एक तरह से करीब साठ घंटे तक मुंबई बंधक बन चुकी थी. मुंबई हमले को याद करके आज भी लोगों को दिल दहल उठता है. जानिए क्या हुआ था उस दिन. मुंबई हमलों की छानबीन से जो कुछ सामने आया है, वह बताता है कि 10 हमलावर कराची से नाव के रास्ते मुंबई में घुसे थे. इस नाव पर चार भारतीय सवार थे, जिन्हें किनारे तक पहुंचते-पहुंचते ख़त्म कर दिया गया. रात के तकरीबन आठ बजे थे, जब ये हमलावर कोलाबा के पास कफ़ परेड के मछली बाजार पर उतरे. वहां से वे चार ग्रुपों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी मंजिलों का रूख किया. बताया जाता है कि इन लोगों की आपाधापी को देखकर कुछ मछुआरों को शक भी हुआ और उन्होंने पुलिस को जानकारी भी दी.
26/11 के तीन बड़े मोर्चे
रात के तक़रीबन साढ़े नौ बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर गोलीबारी की ख़बर मिली. मुंबई के इस ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन के मेन हॉल में दो हमलावर घुसे और अंधाधुंध फ़ायरिंग शुरू कर दी. इनमें एक मुहम्मद अजमल क़साब था जिसे अब फांसी दी जा चुकी है. जब हमला हुआ तो ताज में 450 और ओबेरॉय में 380 मेहमान मौजूद थे. खासतौर से ताज होटल की इमारत से निकलता धुंआ तो बाद में हमलों की पहचान बन गया.हमलों की अगली सुबह यानी 27 नवंबर को खबर आई कि ताज से सभी बंधकों को छुड़ा लिया गया है, लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ा तो पता चला हमलावरों ने कुछ और लोगों को अभी बंधक बना रखा है जिनमें कई विदेशी भी शामिल हैं. हमलों के दौरान दोनों ही होटल रैपिड एक्शन फोर्ड (आरपीएफ़), मैरीन कमांडो और नेशनल सिक्युरिटी गार्ड (एनएसजी) कमांडो से घिरे रहे.
गर्भवती महिला पर भी हुआ अटैक
उधर, दो हमलावरों ने मुंबई में यहूदियों के मुख्य केंद्र नरीमन पॉइंट को भी कब्ज़े में ले रखा था. कई लोगों को बंधक बनाया गया. फिर एनएसजी के कमांडोज़ ने नरीमन हाउस पर धावा बोला और घंटों चली लड़ाई के बाद हमलावरों का सफ़ाया किया गया लेकिन एक एनएसजी कमांडो की भी जान गई. हमलावरों ने इससे पहले ही रब्बी गैव्रिएल होल्ट्जबर्ग और छह महीने की उनकी गर्भवती पत्नी रिवकाह होल्ट्जबर्ग समेत कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया. बाद में सुरक्षा बलों को वहां से कुल छह बंधकों की लाशें मिली.
3 दिन तक आतंकियों से जूझते रहे सुरक्षा बल
160 से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं जब 29 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावरों का सफाया हो चुका था और अजमल क़साब के तौर पर एक हमलावर पुलिस की गिरफ्त में था. स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ चुकी थी लेकिन लगभग 160 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी थी.तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे. इस दौरान, धमाके हुए, आग लगी, गोलियां चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती जुड़ती रही और ना सिर्फ भारत से सवा अरब लोगों की बल्कि दुनिया भर की नज़रें ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस पर टिकी रहीं.
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन
26 नवंबर, 2008 को भारत ने आतंक का भयावह रूप देखा था। आतंकियों ने मुंबई के ताज होटल पैलेस में लोगों को बंधक बना लिया था। इस हमले में एटीएस, सेना और पुलिस के कई जांबाज अधिकारी शहीद हो गए थे। उन शहीद अधिकारियों में से एक मेजर संदीप उन्नीकृष्णन भी थे। उनका जन्म 15 मार्च, 1977 को हुआ था।
संदीप होटल ताज में आतंकियों से भिड़े थे और 14 लोगों को सुरक्षित निकाला था. उन्होंने कारगिल में लड़ते हुए पाकिस्तान के कई फौजियों को ढेर कर दिया था.
सेना के सबसे मुश्किल कोर्स 'घातक कोर्स' में टॉप किया था. अदम्य बहादुरी के लिए उन्हें सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र से नवाजा गया. संदीप के आखिरी शब्द थे 'तुम मत आओ, मैं संभाल लूंगा.'