भारत में जल संकट की गंभीर चुनौती व जल प्रबंधन की आवश्यकता ?

21वीं सदी के पहले दशक से पूरे विश्व में दृष्टि डालें तो पता चलता है कि पूरी मानवता कई प्राकृतिक विपदाओं से जूझ रही है। कभी बर्फबारी, कभी समुद्री तूफान, कभी भूकम्प, कभी महामारी, कभी बाढ़, तो कभी जल संकट से पूरी मानवता त्रस्त है। पर्यावरण के साथ निरंतर खिलवाड़ का यह नतीजा है कि बढ़ती जनसंख्या के सामने सबसे बड़े संकट के रूप में जल की कमी ही उभर रही है, पर्याप्त स्वच्छ जल के संकट से पूरा विश्व गुजर रहा है। जल, मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिये एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यह न केवल ग्रामीण और शहरी समुदायों की स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है बल्कि कृषि  और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी आवश्यक है। परंतु जल सदैव ही उन प्रमुख संसाधनों में शामिल है जिन्हें भविष्य में प्रबंधित करना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। यह कहना ज्यादा नहीं होगा कि भारत एक गंभीर जल संकट के रडार पर है। मौजूदा जल संसाधन संकट में होने से, देश की नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, जल संचयन तंत्र (Water-Harvesting Mechanisms) बिगड़ने से भूजल स्तर लगातार घट रहा है। इन सभी के बावजूद जल उसके प्रबंधन और संकट का विषय भारत में आम जनता की चर्चाओं में स्थान नहीं पा सका है।

 

जल संकट और प्रबंधन - वर्तमान स्थिति

 

  • भारत में जल उपलब्धता व उपयोग के तथ्यों पर विचार करें तो भारत में वैश्विक ताज़े जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत उपलब्ध है जिससे वैश्विक जनसंख्या के 18 प्रतिशत/भारतीय आबादी को जल उपलब्ध कराना होता है।

  • वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी कम्पोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स रिपोर्ट में बताया गया है कि देश भर के लगभग 21 प्रमुख शहर (, हैदराबाद दिल्ली, बंगलुरु, चेन्नई और अन्य) वर्ष 2020 तक शून्य भूजल स्तर तक पहुँच जाएंगे एवं इसके कारण लगभग 100 मिलियन लोग प्रभावित होंगे। 

  • साथ ही रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2030 तक भारत में जल की मांग, उसकी पूर्ति से लगभग दोगुनी हो जाएगी।

  • वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता 6000 घनमीटर / व्यक्ति थी, जो वर्ष 2000 में 2300 घनमीटर / व्यक्ति रह गई तथा वर्ष 2025 तक इसके और घटकर 1600 घनमीटर / व्यक्ति रह जाने का अनुमान है।

  • आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 970 लाख लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता । वहीं देश के ग्रामीण इलाकों में तकरीबन 70 प्रतिशत लोग प्रदूषित पानी पीने और 33 करोड़ लोग सूखे वाली जगहों में रहने को मजबूर हैं।

  • भारत में तकरीबन 70 प्रतिशत जल प्रदूषित है, जिसके कारण जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर था। आँकड़ों के अनुसार, लगातार दो साल के कमज़ोर मानसून के बाद देश भर में लगभग 330 मिलियन लोग (देश की एक चौथाई आबादी) गंभीर सूखे के कारण प्रभावित हुए हैं।

 

देश में पानी की खपत

 

  • देश में जल की कुल खपत का तकरीबन 85 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र में, 10 प्रतिशत उद्योगों में और केवल 5 प्रतिशत पानी घरों में प्रयोग होता है।

 

वर्तमान में जल प्रबंधन की स्थिति

 

भारतीय नदियों से हमें औसतन सालाना 1170 ml बारिश का पानी, नवीकरणीय जल संरक्षण से भी सालाना 1608 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी हर साल मिल जाता है। और हमारे पास दुनिया का जो नौवाँ सबसे बड़ा फ्रेश वॉटर रिज़र्व है, स्पष्टतः इसके बाद भारत में व्याप्त पानी की समस्या जल संरक्षण को लेकर हमारे कुप्रबंधन को दर्शाती है, न कि पानी की कमी को।   

 

जल प्रबंधन का अर्थ?

 

जल प्रबंधन का आशय जल संसाधनों के सुनियोजित प्रयोग से है वही जल की लगातार बढ़ती मांग के कारण देशभर में कई वर्षों से जल के उचित प्रबंधन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। जल प्रबंधन के तहत पानी से संबंधित जोखिमों जैसे- सूखा, संदूषण और बाढ़ इत्यादि के प्रबंधन को भी शामिल किया जाता है। यह प्रबंधन स्थानीय प्रशासन और किसी व्यक्तिगत इकाई द्वारा  भी किया जा सकता है। जल का इस प्रकार प्रबंधन करना कि सभी लोगों तक वह पर्याप्त मात्रा में पहुँच सके, उचित जल प्रबंधन कहलाता है

 

जल प्रबंधन की आवश्यकता क्यों?

 

  • देश में जनसंख्या विस्फोट या किसी अन्य कारण से विभिन्न जल निकायों जैसे- नदियों, झीलों और तालाबों में प्रदूषण का स्तर प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

  • देश के अधिकांश हिस्सों में भूजल स्तर अपेक्षाकृत काफी नीचे चला गया है, यूनेस्को की एक रिपोर्ट से पता चला कि भारत दुनिया में भूमिगत जल का सर्वाधिक प्रयोग करने वाला देश है।

  • देश में कृषि की बेहतरी के लिये कुशल सिंचाई पद्धतियों को विकसित करने में जल प्रबंधन मदद करता है।

  • हमें जल अगली पीढ़ी के लिये भी बचा कर रखना है तथा यह उचित जल प्रबंधन के अभाव में संभव नहीं हो सकता।

  • जल प्रबंधन प्रकृति और मौजूदा जैव विविधता के चक्र को बनाए रखने में मदद करता है।

  • चूँकि जल स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिये देश में स्वच्छता को तब तक पूर्णतः सुनिश्चित नहीं किया जा सकता जब तक जल का उचित प्रबंधन न किया जाए।

  • देश की अर्थव्यवस्था पर भी जल संकट का नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ता है और जल प्रबंधन की सहायता से इसको खत्म कर नकारात्मक प्रभाव से बचाया जा सकता है।

 

भारत में जल प्रबंधन के समक्ष चुनौतियाँ

 

  • जल की पूर्ति और मांग के अंतर को कम करना।

  • खाद्य उत्पादन को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराना और मांगों के बीच संतुलन स्थापित करना।

  • महानगरों सहित अन्य बड़े शहरों की मांगों को पूरा करना।

  • अपशिष्ट जल को संशोधित करना।

  • पड़ोसी देशों के साथ और सह-बेसिन राज्यों आदि में पानी का बँटवारा करना।

 

जल प्रबंधन के प्रमुख तरीके

 

  • अपशिष्ट जल प्रबंधन प्रणाली द्वारा साफ और सुरक्षित तरीके से अपशिष्ट जल के निपटान में मदद होती हैं। इससे गंदे पानी को रिसाइकिल करके प्रयोग करने योग्य बनाया जाता है ताकि उसे वापस लोगों के घरों में पीने और घरेलू कार्यों में इस्तेमाल कर सके।

  • सिंचाई प्रणालियाँ द्वारा सूखा प्रभावित क्षेत्रों में फसलों के पोषण के लिये अच्छी गुणवत्ता वाली सिंचाई प्रणाली सुनिश्चित करते है। इन प्रणालियों को प्रबंधित किया जाता है ताकि पानी बर्बाद न हो और अनावश्यक रूप से पानी की आपूर्ति को कम करने के लिये इसके पुनर्नवीनीकरण या वर्षा जल का भी उपयोग करते हैं।

  • प्राकृतिक जल निकायों की देखभाल करना

  • झील, नदियाँ, समुद्र इत्यादि प्राकृतिक जल स्रोत महत्त्वपूर्ण हैं। ताज़े पानी और समुद्री पारिस्थितिकी दोनों ही तंत्र विभिन्न जीवों की विविधता का घर हैं इन पारिस्थितिक तंत्रों के समर्थन व सुरक्षा के बिना ये जीव विलुप्त हो जाएंगे।

  • जल संरक्षण पर बल देना आवश्यक है और कोई भी इकाई (चाहे वह व्यक्ति हो या कोई कंपनी) अनावश्यक रूप से उपकरणों के प्रयोग को कम कर रोज़ाना कई गैलन पानी बचा सकता है।

 

अन्य तरीके:

 

  • रेनवाटर हार्वेस्टिंग द्वारा जल का संचयन।

  • वर्षा जल को सतह पर संग्रहीत करने के लिये टैंकों, तालाबों और चेक-डैम आदि की व्यवस्था।

 

निष्कर्ष

 

पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन जल है हमें अपने लिये व आनेवाली भविष्य की पीढ़ियों के लिये भी इसे बचा कर रखना है। वर्तमान समय में जब भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व जल संकट का सामना कर रहा है तो आवश्यक है कि इसे ओर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। भारत में जल प्रबंधन अथवा संरक्षण संबंधी नीतियाँ मौज़ूद हैं, परंतु समस्या उन नीतियों के कार्यान्वयन के स्तर पर है। अतः नीतियों के कार्यान्वयन में मौजूद शिथिलता को दूर कर उनके बेहतर क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये जिससे देश में जल के कुप्रबंधन की सबसे बड़ी समस्या को संबोधित किया जा सके।

No comments yet!

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *