ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 में 121 देशों में से 107 वें स्थान पर भारत/भूख/hungry

भूख एक भावनात्मक शब्द है। हम में से अधिकांश भाग्यशाली हैं कि हमारे पास खाने के लिए पर्याप्त या उससे भी अधिक है। हमने देखा हैं कि अन्य लोग भूख से परेशान रहते हैं। यह भी परेशान करने वाला है कि अच्छी तरह से प्रचारित 2022 ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 121 देशों में से 107 वें स्थान पर भारत है। इस रैकिंग में भारत की जगह नाइजीरिया उत्तर कोरिया, इथियोपिया, सूडान, रवांडा, और कांगो से भी नीचे है। यह ज्यादा समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन क्या मैं जानता  हूं? क्या मैं विकासात्मक अर्थशास्त्र का एक 'एक्सपर्ट' हूं? इसके बावजूद क्या मैंनें जिज्ञासा से बाहर, ऐसा किया जो लोग वास्तव में इन दिनों करना पसंद नहीं करते हैं - वास्तविक रिपोर्टों के माध्यम से चीजों को समझने की कोशिश की, डेटा सोर्स देखे और भयावहता को देखा ओर पढ़ा! यह सब कौन करता है आजकल? केवल हेडिंग पर कमेंट किया और आगे बढ़ गए!



रिपोर्ट कौन जारी करता है:


ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट संयुक्त रूप से आयरलैंड और जर्मनी के गैर-सरकारी संगठनों कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थुंगरहिल्फ़ की तरफ से संयुक्त रूप से जारी की जाती है। दोनों एक प्रतिष्ठित ट्रैक रिकॉर्ड वाले अच्छे संगठन हैं। 60 पन्नों की इस रिपोर्ट की फॉर्मेटिंग और भाषा को परफेक्ट बनाया गया है। इसे खूबसूरत तस्वीरों के माध्यम से चित्रित किया गया हैं, जैसे कि अफ्रीका के खेतों में महिलाएं के सब्जियां पकड़े हुए हैं। फाइलन रिपोर्ट को निर्धारित करने के लिए चार क्राइटेरिया का यूज किया जाता है: अल्पपोषण, बच्चे की स्टंटिंग /नाटापन दर, चाइल्ट वेस्टिंग दर/ऊंचाई के हिसाब से कम वजन और बाल मृत्यु दर। इस प्रकार, चार में से तीन क्राइटेरिया बच्चों से संबंधित हैं। बाल स्टंटिंग दर / नाटापन को उन बच्चों के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें 5 साल के बच्चे के लिए रेफरेंस हाइट के दो स्टैंडर्ड डेविएशन कम हैं। चाइल्ड वेस्टिंग रेट की दर को उन बच्चों के रूप में परिभाषित किया गया है जो 5 साल के बच्चे का रेफरेंस वजन के दो स्टैंडर्ड डेविएशन कम हैं।

तर्क यह है कि यदि बच्चे पर्याप्त लम्बे नहीं हैं या उनका वजन पर्याप्त नहीं है, तो यह राष्ट्रीय भूख का सूचक है। इन क्राइटेरिया में ही भारत के खराब स्कोर के कारण रैंकिंग में गिरावट आई। ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट हमारे अपने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 से भारत का डेटा लेती है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 6 लाख से अधिक घरों के एक बड़े सैंपल का सर्वे करके रिपोर्ट को तैयार किया जाता है। 700 से अधिक पेज की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी, भारत के बच्चे के स्टंटिंग / नाटापन और बच्चे के वेस्टिंग /ऊंचाई के हिसाब से कम वजन होने की दर के आंकड़े हैं। इसमें कहा गया है कि 36% भारतीय बच्चे कुपोषित हैं (या उनकी ऊंचाई दो मानक विचलन से कम होनी चाहिए) और 19% चाइल्ड वेस्टिंग है।

 


ये वैश्विक भूख सूचकांक को मापने के दुनिया के कुछ उच्चतम मूल्य हैं। जिन्हें जीएचआई क्राइटेरिया स्प्रैडशीट से जोड़ेगें और देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि भारत उत्तर कोरिया से भी पीछे है। हम एक भूखे देश हैं! वैश्विक भूख सूचकांक को तैयार करने वाले इसका विरोध कर सकते हैं कि वे केवल भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिए गए डेटा का यूज कर रहे हैं। इसलिए, किसी को भी नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 रिपोर्ट की जांच करने की आवश्यकता है। एकबार फिर, 36 प्रतिशत या एक तिहाई से अधिक भारतीय बच्चों का अविकसित होना मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता।


 

भारत में वैश्विक भूख सूचकांक की बड़ी संख्या का कारण क्या है?

 

  • देश के एनएफएचएस में यूज की जाने वाली रेफरेंस हाइट। वे डब्ल्यूएचओ के गाइडेंस का यूज करते हैं कि 5 साल की उम्र में बच्चे को कितना लंबा होना चाहिए।
  • वे दो स्टैंडर्ड डेविएशन कट-ऑफ पॉइंट भी देते हैं,जो सामान्यतया केवल 3% बच्चों में होना चाहिए।
  • डब्ल्यूएचओ के अनुसार  5 साल के लड़के के लिए औसत ऊंचाई 110.3 सेमी होनी चाहिए। दो स्टैंडर्ड डेविएशन पॉइंट 101.6 सेमी है, इसके नीचे उसे अविकसित माना जाता है। इस ग्लोबल स्टैंडर्ड को हमें पूरा करना चाहिए, हमारी जातीयता, नस्ल और आनुवंशिकी से इस रिपोर्ट कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए, एक ऐसे देश में जहां लगभग सभी के पास एक सेलफोन है, इतनी कम रेंज हमारे पास डेटा उपलब्ध हैं लेकिन फिर भी हमारे 36% बच्चे अविकसित हैं!
  • कई रिसर्च पेपर्स में डब्ल्यूएचओ के रेफरेंसऊंचाई और वजन चार्ट में खामियां पाई गई हैं।
  • उदाहरण के लिए, स्टडीज ने संपन्न भारतीयों के बच्चों की लंबाई की तुलना की है। निश्चित रूप से, उन्हें खाने के लिए पर्याप्त मिलता है। हालांकि, उनमें भी 'बौनापन' का प्रतिशत अधिक है।


36 प्रतिशत भारतीय क्या विकलांग हैं:


क्या हमें अभी भी डब्ल्यूएचओ के रेफरेंस हाइट का यूज करना चाहिए। अगर हमारे 36 प्रतिशत बच्चे नाटे हैं, तो इसका मतलब है कि 36 प्रतिशत भारतीय वयस्क भी विकलांग हैं? अगर ऎसा नहीं हैं, तो क्या है? 5 साल की उम्र के बाद ये अविकसित बच्चे जादुई रूप से कैसे बढ़ते हैं? यह एक गंभीर समस्या है। ऎसी रिपोर्ट बनाने के लिए कुछ क्राइटेरिया निर्धारित करने और कुछ रेफरेंस लिस्ट बनाने के लिए प्रयास किए जाते हैं। यह सब पश्चिमी, विकसित-देशों के नजरिये/ क्राइटेरिया के साथ किया जाता है। वे जो भी डेटा-क्रंच के लिए स्वतंत्र हैं , लेकिन 'भूख' जैसे भावनात्मक शब्दों का उपयोग करने के लिए, वैश्विक 'भूख' सूचकांक बनाने का दावा करना। इसके साथ ही हमें भूख से पीड़ित लोगों का देश दिखाना बिल्कुल गलत है। फिर इसे WJFLI इंडेक्स या वी-जस्ट-फेल्ट-लाइक-इट इंडेक्स कहें। हमें इससे बिल्कुल भी परेशानी नहीं है।

इस रिपोर्ट पर सवाल उठाने के लिए भारत सरकार की प्रतिक्रिया मान्य व सही है। यह सही है कि, हमारे पास कुपोषण की समस्या है, लेकिन इसमें पहले की तुलना में  स्थिति काफी बेहतर है। यह निश्चित रूप से जीएचआई का सही सुझाव नहीं है। इससे साथ ही, भारत सरकार को अपने स्वयं के डेटा की भी जांच करनी चाहिए जो बताते हैं कि 36% भारतीय बच्चे कुपोषित हैं। डब्ल्यूएचओ के क्राइटेरिय, रेफरेंस हाइट के लिए हमें सवाल उठाने या वैकल्पिक उपाय खोजने की जरूरत है। क्यों कि हो सकता है कि औसत भारतीय बच्चे की ऊंचाई और वजन की तुलना हम एक समृद्ध समूह के साथ कर रहे है जो कि उचित नहीं है, जैसे कि शीर्ष भारतीय शहर के स्कूली बच्चे।

 

 

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