आज भारत अंतरिक्ष शोध क्षेत्र में बड़ी प्रगति कर चुका है। इसकी उपलब्धियों में ऐसे कई चरण शामिल हैं, जिन्होंने विकासशील राष्ट्रों के लिए नई मिसाल पेश की है। जिस तरह दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी नासा अपने बड़े अविष्कारों के लिए दुनियाभर में पहचानी जाती है वहीं इसरो भी अंतरिक्ष में शोध के कई बड़े संकल्प ले रहा है। इसरो कई उपलब्धियों से दुनियाभर में अपना लोहा मनवा चुका है। इसरो की कई उपलब्धियां तो इतनी बड़ी हैं कि उनमें अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों को भी सफलता नहीं मिली है। आज इसरो की गिनती विश्व के सबसे बड़े अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्रों में होती है। हम सभी इस बात से अच्छे से वाकिफ हैं कि 50 साल पहले 15 अगस्त 1969 को डॉ. विक्रम साराभाई ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की थी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे वैज्ञानिक इस सफर के लिए साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे।
21 नवंबर, 1963 को केरल के तिरुअनंतपुरम के पास थंबा से पहले रॉकेट के लॉन्च के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू हुआ था। इस मिशन के लिए प्रक्षेपण स्थल पर रॉकेट को साइकिल पर लादकर ले जाया गया था। आपको यह जानकर इससे भी ज्यादा हैरानी होगी कि पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था। इसके बाद एक स्थानीय कैथोलिक चर्च को वैज्ञानिकों के दफ्तर में तब्दील कर दिया गया। जहां मवेशियों के रहने की जगह थी उसे प्रयोगशाला बना दिया। इस प्रयोगशाला में अब्दुल कलाम जैसे युवा वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया। जब दूसरा रॉकेट लॉन्च करने की बारी आई तो वो बहुत बड़ा और भारी था जिसे साइकिल पर ले जाना मुमकिन नहीं था। इसलिए इस बार रॉकेट को ले जाने के लिए बैलगाड़ी का इस्तेमाल किया गया।
साइकल और बैलगाड़ी पर रखकर रॉकेट को इधर से उधर ले जाने वाला देश आज चांद और आसमान पर कब्जा करना सीख गया है। कुछ दिनों पहले भारत ने अपने दूसरे चंद्र मिशन, चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रच दिया। ये भारत का चांद पर कदम रखने के लिए दूसरा विशाल मिशन है। इसरो का सफर इस मुकाम पर पहुंच गया है कि आज भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में दुनिया के सबसे शक्तिशाली पांच देशों में से एक है । किसी समय में भारत के उपग्रहों को लॉन्च करने से मना करने वाला अमेरिका खुद भारत के साथ व्यावसायिक समझौता करने को इच्छुक है।
जब अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से इंदिरा गांधी ने पूछा, ‘कैसा दिखता है हिंदुस्तान…‘
भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा थे। 1984 में राकेश को दो अन्य सोवियत अंतरिक्षयात्रियों के साथ अंतरिक्ष जाने का मौका मिला। जब राकेश अंतरिक्ष पहुंचे थे तो भारत के लोगों के लिए ये विश्वास न करने जैसा था। जब वह अंतरिक्ष में थे, तब इंदिरा गांधी ने वीडियो कॉलिंग के जरिये उनसे बात की थी। वीडियो में इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा, अंतरिक्ष में भेजने से पहले आपको जो कड़ी ट्रेनिंग दी गई, वह कितनी जरूरी थी। इसके जवाब में राकेश शर्मा कहते हैं- जो ट्रेनिंग दी गई थी, वह बेहद जरूरी थी और उसी की बदौलत हम सब यहां सुरक्षित डॉकिंग कर पाए हैं। इसके बाद इंदिरा ने पूछा- ऊपर से हिन्दुस्तान कैसा दिखता है? इसके जवाब में राकेश शर्मा ने जो कहा था उसे हमेशा याद किया जाता है। राकेश शर्मा ने कहा- "मैं बिना किसी हिचक के कह सकता हूं- सारे जहां से अच्छा..."