सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा मिड डे मील स्कीम चलाई गई एक स्कीम है जिसके जरिए स्कूल में पढ़ रहे छोटी आयु के बच्चों को पोषक भोजन खाने के लिए दिया जाता है. ये स्कीम काफी सालों से हमारे देश में चल रही है और इस स्कीम को हर स्टेट के सरकारी स्कूलों में चलाया जा रहा है. इस स्कीम के तहत हर रोज करोड़ो बच्चों को स्कूल में भोजन करवाया जाता है.
मिड डे मील योजना 2021-22 (Mid Day Meal Yojana)
स्कीम का नाम
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मिड डे मील (मध्याह्न भोजन योजना)
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शुरुआत
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साल 1995
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किसने की
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केंद्र सरकार
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संबंधित मंत्रालय
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मानव संसाधन विकास मंत्रालय
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लाभार्थी
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सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए
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अधिकारिक वेबसाइट
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यहाँ क्लिक करें
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टोल फ्री नंबर
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1800-180-8007
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मिड डे मील योजना क्या है (Mid Day Meal)
सरकार की ओर से सरकारी स्कूल में सभी बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया जाता है, ताकि स्कूल में बच्चे रोजाना आयें और उन्हें पर्याप्त पोषण मिलता रहे. इसके लिए सरकार ने मिड डे मील योजना की शुरुआत की है. इस योजना के तहत सरकार बच्चों को शिक्षा के साथ ही पोषित और स्वस्थ बनाना चाहती है.हालही में सरकार ने यह निर्णय लिया है कि वे इस योजना के तहत छात्रों को प्रत्यक्ष रूप से भी लाभ पहुँचाना चाहती है, यानि कि अब कक्षा 1 से कक्षा 8 तक के बच्चों के खाते में सीधे पैसे का स्थानांतरण किया जायेगा. इसका लाभ 11 करोड़ 80 लाख छात्रों को लाभ पहुँचाने का निश्चिय किया गया है. और इस प्रस्ताव के लिए मंजूरी भी दे दी गई है. इसका लाभ सरकारी स्कूल में पढने वाले छात्रों को दिया जाना है. केंद्र सरकार द्वारा राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों को इस योजना के लिए एक हजार 200 करोड़ रूपये की राशि दी जाएगी. इस योजना में दिया जाने वाला भोजन बच्चों की पोषण एवं उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करेगा. इससे पहले सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि –“हम दूध की खपत बढ़ाने के लिए मिड – डे – मील योजना के तहत दूध को इसमें शामिल करने की योजना बना रहे हैं”. इस पर भी केंद्र सरकार द्वारा आलम किया गया था.
Mid day meal yojana (Budget) / योजना का बजट
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प्रत्येक फाइव ईयर प्लान में सरकार द्वारा मिड डे मील स्कीम से जुड़ा हुआ बजट तय किया जाता है. 11 वे फाइव ईयर प्लान में मिड डे मील स्कीम के लिए सरकार ने 9 अरब का बजट निर्धारित किया था. जबकि 12 वे फाइव ईयर प्लान में मिड डे मील स्कीम के लिए सरकार ने 901.55 अरब का बजट रखा था.
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केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिड डे मील स्कीम पर आने वाले खर्चे को साझा किया जाता है.उसमें से केंद्र सरकार को 60 प्रतिशत और राज्यों को 40 प्रतिशत पैसे देने होते हैं.
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केंद्र सरकार भोजन के लिए अनाज और वित्त पोषण (Financing) प्रदान करती है, जबकि संघीय और राज्य सरकारों द्वारा सुविधाओं, परिवहन और श्रम की लागत का खर्चा उठाया जाता है.
मिड डे मील योजना क्यूँ शुरू की गई
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कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ द चाइल्ड, एक मानव अधिकार संधि है और इस ट्रीटी का हिस्सा भारत भी है. ये संधि बच्चों के नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक अधिकारों से जुड़ी हुई संधि है.
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भारत इस संधि का सदस्य है, इसलिए ये भारत की जिम्मेदारी है कि वो अपने देश के बच्चों को “पर्याप्त पौष्टिक खाद्य पदार्थ” मुहैया कराए. इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए भारत सरकार ने मिड डे मील को स्टार्ट करने का निर्णय लिया था और इस तरह से इस स्कीम को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अंतर्गत शुरू किया गया था.
मिड डे मील योजना प्रोग्राम कब शुरू हुआ (Program)
इस स्कीम को 15 अगस्त, 1995 में स्टार्ट किया गया था और सबसे पहले इस स्कीम को 2000 से अधिक ब्लॉकों के स्कूलों में लागू किया गया था. इस स्कीम के सफल होने के बाद इस स्कीम को साल 2004 में पूरे देश के सरकारी स्कूलों में लागू कर दिया था और इस वक्त ये स्कीम हमारे पूरे देश के सराकरी स्कूलों में चल रही है.
मिड डे मील योजना पात्रता नियम
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इस स्कीम की मदद से सरकारी स्कूलों के प्राइमरी और अपर प्राइमरी कक्षा के छात्रों को, सरकार सहायता, स्थानीय निकाय, शिक्षा गारंटी योजना से जुड़े स्कूलों के छात्रों को, वैकल्पिक अभिनव शिक्षा केंद्र, मदरसे और श्रम मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को फायदा मिलता है.
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इस स्कीम के अनुसार जो भी बच्चे ऊपर बताए गए स्कूलों के प्राइमरी और अपर प्राइमरी कक्षा में पढ़ाई करते हैं उन्हें हर रोज (जिन दिनों स्कूल खुले होते हैं) मुफ्त में मध्यान भोजन करवाना अनिवार्य हैं.
मिड डे मील योजना उद्देश्य / महत्व
मिड डे मील बच्चों से जुड़ी हुई योजना है जिसका मकसद बच्चों को अच्छा भोजना मुहैया करवाना है और इस स्कीम के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
बच्चों का बेहतर विकास हो : आज भी हमारे देश में कई ऐसे लोग हैं जो कि अपने परिवार को दो वक्त का खाना देने में असमर्थ हैं. जिसके कारण इन परिवार से नाता रखने वाले छोटे बच्चों का मानसिक विकास पूरा नहीं हो पाता है. इसलिए सरकार, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को मिड डे मील के जरिए पोषक भोजन उपलब्ध करती हैं ताकि उनका अच्छे से विकास हो सके.
ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूल आ सकें: जो दूसरा सबसे बड़ा उद्देश्य मिड डे मील का है वो शिक्षा से जुड़ा हुआ है. इस स्कीम के जरिए बच्चों को खाना उपलब्ध करवाया जाता है और ऐसा होने से कई गरीब परिवार ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना स्टार्ट कर दिया है.
सूखा प्रभावित क्षेत्रों के बच्चों को खाना मुहैया करवाना: इस स्कीम के तहत जिस दिन भी स्कूल खुले रहते हैं, उस दिन बच्चों को भोजना करवाना अनिवार्य होता हैं. वहीं गर्मी की छुट्टियों में स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को भोजन नहीं मिल पाता है. लेकिन साल 2004 में सरकार ने गर्मी की छुट्टियों के दिन भी इस स्कीम को सूखा प्रभावित क्षेत्रों के स्कूलों में चलाए रखने का आदेश दिए थे. जिसके बाद से इन इलाकों के बच्चों को गर्मियों की छुट्टियों में भी भोजन दिया जाता था.
मिड डे मील योजना मंत्रालय
मिड डे मील स्कीम को ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्ट्री द्वारा हमारे देश में चलाया जाता है और इस मंत्रालय द्वारा ही इस स्कीम से जुड़ी गाइडलाइंस बनाइ गई है. साथ ही इस मंत्रालय द्वारा कई ऐसी कमेटी में बनाई गई हैं जो कि इस स्कीम को और बेहतर बनाने के कार्य करती हैं.
हर राज्य में बनाई गई हैं कमेटी
मिड डे मील स्कीम को लेकर किसी तरह का घोटाला और लापरवाही ना बरती जाए इसलिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कई कमेटी का गठन किया है. जिनमें से कुछ कमेटी नेशनल लेवल पर इस स्कीम पर निगरानी रखती है, जबकि कुछ स्टेट, जिला, नगर, ब्लॉक, गाँव और स्कूल लेवल पर इस स्कीम के कार्य को देखती है और ये सुनिश्चित करती है कि देश के हर स्कूल में सही तरह का खाना बच्चों को दिया जाए.
नेशनल लेवल केमटी
नैशनल लेवल पर अधिकारित समिति, राष्ट्रीय स्तर की स्टीयरिंग-सह-निगरानी समिति (एनएसएमसी) और कार्यक्रम स्वीकृति बोर्ड (पीएबी) इस स्कीम की मॉनीटर करता है और ये कमेटी सीधे तौर पर मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा हेड की जाती हैं.
स्टेट लेवल
स्टेट लेवल पर राज्य स्तरीय संचालन-सह-निगरानी समिति इस स्कीम पर निगरानी रखती है और ये केमटी राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कार्य करती है.
जिला स्तर
हर राज्य के प्रत्येक जिले में भी एक कमेटी का गठन इस स्कीम की निगरानी करने के लिए किया गया है. हर जिले की जिला स्तर समिति ये सुनिश्चित करती है कि उनके जिला स्तर के अंदर अपने वाले सभी लाभांवित स्कूलों में बच्चों को इस स्कीम के तहत अच्छा खाना दिया जाए. जिला स्तर समिति की अध्यक्ष लोकसभा के वरिष्ठ सदस्य द्वारा की जाती हैं.
स्थानीय स्तर पर
स्थानीय स्तर पर गांव शिक्षा समितियों (वीईसी), अभिभावक-शिक्षक संघ (पीटीए), स्कूल प्रबंधन समितियों (एसएमसी) के सदस्य, ग्राम पंचायत या ग्राम सभा के लोग, नियमित रूप से इस स्कीम के कार्यों को देखते हैं.
संयुक्त समीक्षा मिशन (जेआरएम)
ऊपर बताई गई कमेटियों के अलावा संयुक्त समीक्षा मिशन (जेआरएम) भी इस स्कीम को और बेहतर बनाने के लिए कार्य करता हैं. केंद्र द्वारा गठित किए गए जेआरएम के सदस्य शैक्षणिक और पोषण विशेषज्ञ होते हैं. जो समय-समय पर क्षेत्रीय स्कूलों में जाकर इस स्कीम की समीक्षा करते हैं और उसके बाद अपनी रिपोर्ट को उस राज्य के साथ साझा करते हैं जिस राज्य के स्कूल के खाने की ये समीक्षा करते हैं.
मध्याह्न भोजन योजना – (Guidelines)
मिड डे मील स्कीम को जिन भी स्कूलों में चलाया जाता है, उन सभी स्कूलों के लिए सरकार ने गाइडलाइंस तैयार की हैं और इन गाइडलाइंस का पालन हर स्कूल को करना पड़ता है.
– मिड डे मील से जुड़ी प्रथम गाइडलाइन के मुताबिक जिन स्कूलों में मिड डे मील का खाना बनाया जाता है, उन स्कूलों को ये खाना रसोई घर में ही बनाना होता है. कोई भी स्कूल किसी खुली जगह में और किसी भी स्थान पर इस खाने को नहीं बना सकता है.
– दूसरी गाइडलाइन के मुताबिक रसोई घर, क्लास रूम से अलग होना चाहिए, ताकि बच्चों को पढ़ाई करते समय किसी भी तरह की परेशानी ना हो.
– स्कूल में खाना बनाने में इस्तेमाल होनेवाले ईंधन जैसे रसोई गैस को किसी सुरक्षित जगह पर रखना अनिवार्य है. इसी के साथ ही खाना बनाने वाली चीजों को भी साफ जगह पर रखने का जिक्र इस स्कीम की गाइडलाइन में किया गया है.
– जिन चीजों का इस्तेमाल भी खाना बनाने के लिए किया जाएगा, उन सभी चीजों की क्वालिटी एकदम अच्छी होनी चाहिए और पेस्टिसाइड वाले अनाजों का प्रयोग किसी भी प्रकार के खाने में नहीं किया जाना चाहिए.
– खाने बनाने के लिए केवल एगमार्क गुणवत्ता और ब्रांडेड वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाने का उल्लेख भी इस योजना की गाइडलाइन में किया गया है.
– खाना बनाने से पहले सब्जी, दाल और चावल को अच्छे से धोने का नियम भी इस स्कीम की गाइडलाइन में जोड़ा गया है.
– गाइडलाइन के मुताबिक जिस जगह यानी भंडार में खाने की सामग्री को रखा जाएगा उस भंडार घर की साफ पर भी अच्छा खासा ध्यान देना होगा.
– जिन रसोइयों द्वारा बच्चों को दिए जानेवाला ये खाना बनाया जाएगा, उन रसोइयों को भी अपनी साफ सफाई का ध्यान रखना होगा. खाना बनाने से पहले रसोइयों को अपने हाथों को अच्छे से धोना होगा और उनके हाथों के नाखून भी कटे होने चाहिए. इसकी के साथ जिस व्यक्ति द्वारा बच्चों को खाना परोसा जाएगा उसे भी अपनी साफ सफाई का ध्यान रखना होगा.
– खाना बनने के बाद उस खाने का स्वाद पहले दो या तीन लोगों को चखना होगा और इन दो तीन लोगों में से कम से कम एक टीचर शामिल होना चाहिए.
– समय समय पर बच्चों को दिए जाने वाले इस खाने के नमूनों का टेस्ट स्कूलों को मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में करवाना होगा.
– जैसे ही बच्चों के देने वाला खाना बना लिया जाएगा, तो उस खाने को बनाने में इस्तेमाल हुए बर्तनों को साफ करके ही रखना होगा. गाइडलाइन के मुताबिक बच्चों को ये खाना केवल साफ जगह पर ही परोसा जाना चाहिए.
मिड डे मील मीनू 2021 (मध्याह्न भोजन योजना मेन्यू) (Food Menu)
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मिड डे मील योजना का मकसद बच्चों को पोषण भरा खाना देना है ताकि उनका विकास अच्छे से हो सके. सरकार द्वारा बच्चों को किस तरह का खाना दिया जाएगा उसके लिए भी गाइडलाइंस तैयार की गई हैं.
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गाइडलाइन के मुताबिक कक्षा एक से पांच तक के हर बच्चे को दिए जानेवाले खाने में कैलोरी की मात्रा 450 और प्रोटीन (ग्राम में) की मात्रा 12 तक होनी चाहिए. जबकि छठी से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र को दिए जानेवाले खाने में कैलोरी की मात्रा 700 और प्रोटीन (ग्राम में) की मात्रा 20 होनी चाहिए.
मिड दे मील योजना साप्ताहिक आहार तालिका
खाना
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कितना मात्रा में दिया जाएगा (ग्राम में)
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चावल / गेहूं
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100 ग्राम, प्राथमिक कक्षा के बच्चों के लिए
150 ग्राम, छठी से आठवीं कक्षा के बच्चों के लिए
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दाल
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20 ग्राम, प्राथमिक कक्षा के बच्चों के लिए
30 ग्राम, छठी से आठवीं कक्षा के बच्चों के लिए
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सब्जियां
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50 ग्राम, प्राथमिक कक्षा के बच्चों के लिए
75 ग्राम, छठी से आठवीं कक्षा के बच्चों के लिए
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तेल और वसा
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5 ग्राम, प्राथमिक कक्षा के बच्चों के लिए
7.5 ग्राम, छठी से आठवीं कक्षा के बच्चों के लिए
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मिड डे मील राशि
इस योजना के तहत प्रतिदिन एक छात्र पर साढ़े 6 रूपये से लेकर साढ़े 9 रूपये तक का खर्च आता है. जिसका वहां केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार मिल कर करती है.
मिड डे मील कुक सैलरी (Salary)
मिड दे मील योजना के तहत खाना बनाने वाले रसोइयों यानि की कुक के वेतन की बात करें तो आपको बता दें कि यह राज्य के ऊपर निर्भर करता है कि वे मिड डे मील बनाने वाले रसोइयों को कितने रूपये देते हैं. यह वेतन उनका 1 हजार से लेकर 20 हजार रुपये तक कुछ भी हो सकता है.
मिड डे मील योजना राज्य स्तर पर
इस स्कीम को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाया जाता है और इसलिए हर राज्य सरकार अपने हिसाब से बच्चों को दिए जाने वाले खाने के मेन्यू में अन्य खाने की चीजों को भी शामिल कर सकती है. इस स्कीम के अंदर जो खाना बच्चों को दिया जाता है उसमें दूध, खीर, दलिया जैसे खाने की चीजों को शामिल नहीं किया गया है. इसलिए अगर कोई राज्य, अपने राज्य के स्कूलों के बच्चों को दूध या फिर फल, भोजन में देना चाहते हैं तो वो ऐसा कर सकते हैं. गुजरात, कर्नाटक, केरल, पांडीचेरी, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य में बच्चों को दूध, फल आदि चीजें भी इस मील में दी जाती हैं.
मिड डे मील योजना किस राज्य में शुरू हुई
इस योजना को देश की आजादी से पहले मद्रास कारपोरेशन के द्वारा तमिलनाडु में शुरू किया गया था. इसके बाद सन 1930 में यह पंदुचेरी में शुरू हुई. और 1962 में इसे भारत की आजादी के बाद औपचारिक रूप से तमिलनाडु ने शुरू किया गया. सन 1995 से यह पूरे देश में शुरू हो गई.
मिड डे मील योजना राजस्थान
राजस्थान राज्य में भी इस योजना को 15 अगस्त सन 1995 में शुरू किया गया था. हालांकि राजस्थान सरकार ने इस योजना के अंतर्गत और भी तरह की योजना शुरु की जैसे अन्नपूर्णा दूध योजना आदि. और इस योजना का लाभ राज्य के सरकारी स्कूल के बच्चों को दिलाया. और आज यह योजना वहां भी अच्छे से चल रही है.
मिड डे मील योजना विद्यालय में क्रियान्वित मॉडल (Implementation models)
इस स्कीम को तीन तरह के मॉडल के तहत चलाया जाता है जो कि विकेंद्रीकृत मॉडल, अंतरराष्ट्रीय सहायता और केंद्रीकृत मॉडल है.
विकेंद्रीकृत मॉडल (Decentralised Model)
विकेन्द्रीकृत मॉडल में, स्थानीय कुक और हेल्पर्स द्वारा भोजन पकाया जाता है. इस मॉडल के तहत साइट (स्कूल) पर खाना बनाया जाता है जिसके चलते बच्चों के माता पिता और स्कूल के शिक्षक इस चीज पर निगरानी रख पाते हैं कि किस तरह से कुक द्वारा खाना बनाया जा रहा है.
केंद्रीकृत मॉडल (Centralised Model)
केंद्रीकृत मॉडल के तहत एक बाहरी संगठन द्वारा खाना बनाया जाता है और इस खाने को फिर स्कूलों में भेजा जाता है. ये मॉडल ज्यादातर शहरी इलाकों में कामयाब है. वहीं केंद्रीकृत रसोई में बनने वाले खाने की स्वच्छता की बात की जाए तो, साल 2007 में दिल्ली में जब इन जगहों पर बनाए गए खाने के सैंपल का टेस्ट किया गया था, तो इन जगहों पर बनाए गए खाने की गुणवत्ता खराब पाई गई थी.
अंतर्राष्ट्रीय सहायता (International Assistance)
कई अंतर्राष्ट्रीय स्वैच्छिक और दान संगठनों द्वारा दिल्ली, मद्रास और नगर निगम के स्कूलों में दूध पाउडर प्रदान किए जाते हैं. केयर (CARE) नामक संगठन द्वारा सोया भोजन, गेहूं, और वनस्पति तेल कई स्कूल को दिए जाते है, जबकि यूनिसेफ द्वार उच्च प्रोटीन खाद्य पदार्थ और शैक्षणिक सहायता स्कूलों के बच्चों को दी जाती है.
मिड डे मील योजना के फायदे (Advantages)
काफी लंबे समय से ये स्कीम हमारे देश में चल रही है और काफी कामयाब भी साबित हुई है. इस स्कीम से बच्चों को कई सारे फायदे भी पहुंचे हैं.
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इस स्कीम के लागू होने से कई ऐसे बच्चे हैं जिन्हें पेट भर खाना मिल पाया है और पोषित खाना मिलने से इन बच्चों का अच्छे से विकास भी हो पाया है.
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आज भी हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शिक्षा को लेकर काफी पिछड़ापन फैला हुआ है. लेकिन इस स्कीम के तहत बच्चों को मुफ्त में खाना खिलाया जाता है इसलिए इन लोगों ने अपनी लड़कियों को भी स्कूल भेजना स्टार्ट कर दिया है, ताकि उनकी बेट्टियों को खान मिल सके.
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स्कूल में खाने मिलने के कारण बच्चों के परिवार वालों द्वारा इन्हें हर रोज स्कूल भी भेजा जाता है और ऐसा होने से बच्चे रोजाना स्कूल में उपस्थिति रहते हैं.
मिड डे मील योजना के नुकसान (Disadvantages)
मिड डे मील खाने से जुड़ी हुई एक स्कीम है और इस मिल के द्वारा जो खाना बच्चों को दिया जाता है उसकी गुणवत्ता काफी खराब होती है. पिछले कई सालों में देखा गया है कि इस स्कीम के तहत दिए जाने वाले खाने को खाने से कई बच्चों की मौत भी हो चुकी है. साथ ही इस स्कीम को सही से चलाने के लिए जो पैसे सरकार द्वारा दिए जाते हैं उन पैसों का घोटला भी कर लिया जाता है और ऐसा होने से ना केवल बच्चों को घटिया खाना मिलता है बल्कि सरकार को भी काफी नुकसान होता है.
मिड डे मील स्कीम की वजह से हर दिन कई बच्चों को पेट भर खाना मिल पाता है और ऐसा होने से हमारे देश के गरीब बच्चे कुपोषण जैसे खतरनाक बीमारी का शिकार होने से बचे रहते है. साथ ही बच्चों का विकास भी अच्छे से हो पाता है.
FAQ –
Q: मिड डे मील योजना क्या है?
Ans: सरकारी स्कूल में सभी बच्चों मध्यान्ह भोजन दिया जाता है, ताकि स्कूल में बच्चे रोजाना आयें और उन्हें पर्याप्त पोषण मिलता रहे. सरकार इसके लिए अलग से गाइडलाइन तैयार करती है.
Q: मिड डे मील योजना कब आई?
Ans: 1995
Q: मध्यान भोजन कार्यक्रम क्या है?
Ans: सरकारी स्कूल में ज्यादा से ज्यादा बच्चे पढ़ने जाएँ, उनकी उपस्थिती स्कूल में बढे और उन्हें अच्छा पौष्टिक भोजन देने के लिए मध्यान भोजन कार्यक्रम की शुरुवात केंद्र सरकार द्वारा 1995 में शुरू हुआ था.
Q: एमडीएम का फुल फॉर्म क्या है?
Ans: Mid Day Meal
Q: दोपहर के भोजन मिड डे मील कार्यक्रम की योजना का मुख्य लक्ष्य क्या है?
Ans: योजना का उद्देश्य है कि देश से कुपोषण खत्म हो, और बच्चों को पोष्टिक अच्छा भोजन मिलता रहे.
Q: मिड डे मील के अंतर्गत काम करने वाले रसोइयों का वेतन कितना है 2020?
Ans: रसोइयों का वेतन 1000 रूपए था पहले अब उसे 1500 रूपए कर दिया गया है.
Q: स्कूल में खाना बनाने वाले की सैलरी कितनी है?
Ans: मध्यान्ह भोजन बनाने वालों को 1500 रूपए सीधे उनके खाते में दिए जा रहे है.
Q: मिड डे मील की तनखा कितनी है?
Ans: योजना में खाना बनाने वाले 1500 मिलते है, साथ ही श्रम योगी मानधन पेंशन योजना के अंतर्गत 3000 रूपए की पेंशन भी उन्हें मिलेगी.
Q: मिड डे मील से हानि क्या है?
Ans: कई बार सरकारी अधिकारी ध्यान नहीं देते है, तो ख़राब खाना बच्चों को परोस दिया जाता है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. ऐसे केस कई बार सुनाई दिए है. सरकार कोई इस समस्या से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए.