क्या आप जानना चाहते हैं की ई-कॉमर्स क्या है और भारत में ई-कॉमर्स का विकास कैसा है?

‘बदलाव’– यही वह चीज़ है जिसकी मदद से मनुष्य इतने ऊँचे मुकाम तक पहुँचा, जहाँ तक और कोई दूसरा जानवर नहीं पहुँच पाया. शुरुआत से ही मनुष्य अपने आसपास के वस्तुओं में ज़रूरी बदलाव करता गया और उन्हें अपने फायदे और ज़रूरत के हिसाब से इस्तेमाल में लाता गया. अब आप उदाहरण के लिए पहिए को ही लें. अगर आज भी मनुष्य लकड़ी को गोल तख्ते के आकार में प्रयोग करता तो क्या हज़ारों मील का सफर तय करना आज के जैसा आसान होता? अगर मोबाइल में बदलाव नहीं लाया गया होता तो क्या आज आप अपना स्मर्टफ़ोन चला पाते? बदलाव की वजह से ही यह संभव हो पाया है की आज आप मेरा लिखा एक आर्टिकल इतनी आसानी से पढ़ पा रहे हैं. ठीक इसी तरह, बाज़ार और उद्योग के क्षेत्र में भी समय-समय पर कई अहम् बदलाव हुए और इन्ही में से एक ज़रूरी बदलाव था दुनिया का ई-कॉमर्स से परिचय करवाना. ई-कॉमर्स एक क्रांति की तरह आया, और उद्योग के क्षेत्र को पूरी तरह झंकझोर  कर रख दिया.

 

ई-कॉमर्स क्या है (What is e-commerce ?)

 

इंटरनेट के माध्यम से उद्योग करने को ई-कॉमर्स या इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स कहते हैं. सरल शब्दों में इंटरनेट की वर्चुअल दुनिया पर अपनी सर्विस, या सेवा प्रदान करना ही ई-कॉमर्स कहलाता है. लेकिन यह ई-कॉमर्स है क्या और इसका महत्व क्या है? शायद यही सवाल अभी आपके दिमाग में भी आया हो। लेकिन, फ़िक्र मत करिये. इस आर्टिकल में मैं आपको  ई-कॉमर्स से जुड़ी सारी जानकारी एक-एक करके दूंगा. तो सबसे पहले हम यह जान लेते हैं की आख़िर ई-कॉमर्स होता क्या है.

 

E-commerce kya hai hindi

 

इन सेवाओं के अंतर्गत इंटरनेट पर सामान को खरीदना और बेचना, मार्केटिंग करना, सामान को पते पर डिलीवर करना, बिल का ऑनलाइन भुगतान करना, ऑनलाइन बैंकिंग करना  आदि आते हैं. उदाहरण के लिए आप भारत की कुछ चर्चित और मशहूर कंपनियों जैसे फ्लिपकार्ट, paytm आदि को ले सकते हैं। आपने देखा होगा की इन प्लेटफार्म पर कुछ सेलर्स अपने सामान को बेचते हैं. वहीँ ग्राहक इन वेबसाइट पर जाकर कुछ ही चंद मिनट में अपनी ज़रूरतों के मुताबिक सामान को आसानी से खरीद लेता है. सामान के अलावा, अब कई कम्पनियाँ अपने  पर मोबाइल फ़ोन और D2H भी रिचार्ज करने की सुविधा भी देने लगे हैं.इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स की शुरुआत 1960 में हुई थी जब दुनिया भर की अनेक कंपनियों ने इंटरनेट के के फीचर इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज (EDI) की मदद से बिज़नेस डाक्यूमेंट्स को दूसरी कंपनियों के साथ शेयर करना शुरू किया. इसके बाद ebay और amazon जैसी कंपनियां इंटरनेट के मैदान मैं उतरीं और इस क्षेत्र में क्रांति लाई.

 

ई-कॉमर्स के कितने प्रकार होते हैं

 

1. Business-to-Business (B2B)

 

इसमें एक बिज़नेस या कंपनी ग्राहक के बजाय दूसरे बिज़नेस या कंपनी सेवा प्राप्त करने के  लिए संपर्क करती है। उदहारण के लिए आप डायरेक्टरी वेबसाइट को ले सकते हैं. इसमें एक कंपनी या उद्योगपति दूसरे ऑनलाइन डायरेक्टरी वेबसाइट से संपर्क करती है जिसकी मदद से वह अपना नाम उस डायरेक्टरी में दर्ज करा सके. इससे दोनों का फायदा होता है. डायरेक्टरी वेबसाइट ओनर को उसका ग्राहक मिल जाता है और दूसरा उद्योगपति उस वेबसाइट के माध्यम से अपनी सेवाओं का प्रचार कर सकता है और ज़्यादा से ज़्यादा ग्राहकों तक अपनी सेवा पहुंचा सकता है.

 

2. Business-to-Consumer (B2C)

 

इस प्रकार के उद्योग में उद्योगपति अपने प्रोडक्ट या सर्विस इंटरनेट के माध्यम से सीधा ग्राहक को बेचता है। इस तरह का बिज़नेस आजकल बहुत अधिक प्रचलन में है. ऑनलाइन स्टोर जैसे ऐमज़ॉन और फ्लिपकार्ट पर सेलर अपने सामान को ग्राहकों तक पहुंचाता है और उसका उचित दाम लेता है.

 

3. Consumer-to-consumer (C2C)

 

इस तरह के बिज़नेस में एक कंस्यूमर अपना सामन या सर्विस इंटरनेट के माध्यम से दूसरे कंस्यूमर को बेचता है. ज़्यादातर बेचा गया सामान सेकंड हैंड या पुराना होता है। इसको समझने के लिए आप olx और quickr जैसे प्लेटफार्म का उदहारण ले सकते हैं. इन वेबसाइट पर एक कंस्यूमर अपने पुराने और इस्तेमाल किये हुए प्रोडक्ट को दूसरे कंस्यूमर को काम दाम में बेचता है.

 

4. Consumer-to-Business (C2B)

 

इस प्रकार के बिज़नेस को समझने के लिए हम कुछ उदहारण की मदद लेते हैं. आपने upwork.com का नाम तो सुना ही होगा। अगर नहीं, तो मैं आपको बता देता हूँ की यह एक ऐसी वेबसाइट है जिस पर आप अपने किसी भी ऑफिस या पढाई के काम को करवाने के लिए आसानी से वर्कर्स को हायर कर सकते हैं। वर्कर्स अपनी मेहनत और टाइम के हिसाब से आपसे पैसे लेते हैं. लेकिन, उन वर्कर्स को हायर करने के लिए आपको अपने काम की डिटेल्स को एक ऐड बना कर डालना होता है, जिसकी मदद से वर्कर्स आप तक पहुँचते हैं.ठीक इसी तरह, ऑनलाइन इन्शुरन्स पालिसी लेने के लिए भी आपको बहुत सी वेबसाइट पर अपनी आवश्यकताएं डालनी पड़ती हैं, जिनको उचित एजेंट्स देख कर आप तक अपनी सर्विसेज पहुंचाते हैं।

 

उपयुक्त दिए गए उदहारण में हमने यह देखा की इस तरह के बिज़नेस में पहले आपको अपनी आवश्यकताओं को ऐड के रूप में डालना होता है जिसको सर्विसेज देने वाले एजेंट्स देख कर आप तक अपनी सर्विसेज पहुंचाते हैं. सरल भाषा में ये कह सकते हैं की इसमें कंस्यूमर बिज़नेस ओनर से कांटेक्ट करता है ताकि उसकी सेवाओं का लाभ उठा सके.आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी की “हर सिक्के के दो पहलु होते हैं”, ठीक उसी तरह ई-कॉमर्स के भी कुछ फायदे और कुछ नुक्सान होते हैं जिनको हमने नीचे विस्तृत रूप में समझाया है.

 

ई-कॉमर्स की कुछ विशेषताएँ:

 

पहुँच:

 

इंटरनेट आज देश के कोने कोने में फैला हुआ है और इसकी मदद से आप कहीं पर भी और कभी भी ऑनलाइन सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं.

 

भ्रष्टाचार-मुक्त:

 

यदि आप दुकानों से कुछ खरीदते हैं तो कई बार आपसे पैसे ज़्यादा चार्ज कर लिए जाते हैं और आप जानते हुए भी कुछ नहीं कर पाते. लेकिन ई-कॉमर्स की दुनिया में आपसे कोई एक्स्ट्रा चार्ज नहीं करता और यदि आपके साथ ऐसा होता भी है तो आप आसानी से ऐसे सेलर को रिपोर्ट कर सकते हैं.

 

डिटेल्स:

 

ऑनलाइन प्रोडक्ट खरीदने पर आपको प्रोडक्ट की पूरी जानकारी दी जाती है. यदि आप कोई मोबाइल फ़ोन आर्डर करना चाहते हैं. तो आपको उसकी सारी डिटेल्स जैसे उसका प्रोसेसर, मेमोरी आदि के बारे में विस्तार से बताया जाता है. इसकी मदद से आप प्रोडक्ट को प्रचलन के अनुसार नहीं, बल्कि उसकी खासियत के अनुसार खरीद सकते हैं.

 

भारत में ई-कॉमर्स का विकास

 

भारत में ई-कॉमर्स सेक्टर बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है. वर्ष 2017 में ई-कॉमर्स से प्राप्त होने वाला रेवेन्यू लगभग US$ 39 बिलियन था और ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की यह धनराशि 2020 तक बढ़कर US$ 120 बिलियन हो जाएगी. यदि प्रतिशत की बात करें तो यह इंडस्ट्री प्रति वर्ष 51 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है जो की बाकी के देशों से बहुत तेज़ है.

 

ई-कॉमर्स का दायरा /Scope of E-Commerce

 

इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स का मतलब सिर्फ ऑनलाइन खरीददारी और बिक्री करने तक ही सिमित नहीं है. ये बिलकुल आम बिज़नेस की तरह ही है जिसमे अलग अलग stages हैं जैसे developing, marketing, selling, delivering, paying ये सभी शामिल है. यहाँ पर इंटरनेट यूजर में काफी बढ़ोतरी हुई है करीब 300मिलियन लोग अब इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं जो की भारत को तीसरा सबसे बड़ा देश इंटरनेट यूजर के मामले में बनाता है.  हाल ही में हम और आप इसके गवाह हैं की लोग बाजार जाकर सामान खरीदने के बजाय घर बैठे ही आर्डर कर के सामान घर मंगवाने लगे हैं. लोग आरामपसंद होते जा रहे हैं. यही वजह है की डायरेक्ट शॉपिंग की बजाय लोगों के बीच ऑनलाइन शॉपिंग की  चली जा रही है. भारत में इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के क्षेत्र में गज़ब का चढ़ाव देखने को मिला है. हमारा देश ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक स्टोर की सफलता की कहानियों का गवाह बन चूका है. खाकर अगर बात करे तो फैशन और इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में ऑनलाइन बिक्री में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है. इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के क्षेत्र में नए व्यापारियों के लिए एक खोल दिया है. आइये जान लेते हैं की इस क्षेत्र में किस तरह के स्कोप हैं.

 

  • इंटरनेट में होने वाले खर्च के कम होने से इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी होती जा रही है.
  • कस्टमर्स को कैश ऑन डिलीवरी जैसी सुविधाएँ देकर साथ ही 15-30 return की सुविधा देकर भी ग्राहकों को आसानी से आकर्षित किया जा सकता है.
  • अभी भी भारत के कई हिस्से ऐसे हैं जहाँ  के पिनकोड तक ऑनलाइन डिलीवरी नहीं जाती है और ऐसे इलाके ज्यादातर उपलब्ध है वैसे इन क्षेत्रों तक भी इंटरनेट की सुविधा पहुँच चुकी है. तो इन क्षेत्रों तक पहुँच बनाकर कस्टमर की बहुत भरी संख्या बधाई जा सकती है.
  • इसी क्षेत्र में एक और सुविधा ऑनलाइन सेवा  जा सकती है वो है स्वास्थ्य से जुडी सेवा. भारत में ही कई  हैं जहाँ पर दवाई की दुकानें नहीं हैं. अगर इन क्षेत्रों में जाकर अच्छी स्वास्थ्य की सेवा पहुंचाई तो इस में काफी अच्छी growth है.
  • मेरी एक सोच है की ऑनलाइन  सुविधाओं और सेवाओं के जैसे ही अगर ऑनलाइन कॉल कर के ambulance की सुविधा कम पैसे में इन इलाके में दी जाए तो ये भी एक बहुत अच्छा मौका है नके लिए जो इसकी शुरुआत करते हैं.

 

ई-कॉमर्स के फायदे / लाभ

 

  • सुविधा। सभी उत्पाद इंटरनेट के माध्यम से आसानी से सुलभ हैं; आपको बस एक खोज इंजन का उपयोग करके उन्हें खोजना है। दूसरे शब्दों में, उत्पादों या सेवाओं को खरीदने के लिए घर छोड़ने की आवश्यकता नहीं है।
  • समय की बचत। ईकॉमर्स का यह भी फायदा है कि ग्राहक गलियारों के बीच या तीसरी मंजिल तक जाने में समय बर्बाद नहीं करते हैं। एक ऑनलाइन स्टोर के साथ, उत्पादों का पता लगाना आसान है और इसे केवल कुछ दिनों में घर के दरवाजे तक पहुंचाया जा सकता है।
  • एकाधिक विकल्प। खरीदारी करने के लिए घर छोड़ने की आवश्यकता नहीं है; आप न केवल सामग्री के मामले में, बल्कि कीमतों के मामले में भी अनंत विकल्पों में से चुन सकते हैं। विभिन्न भुगतान विधियां भी प्रदान की जाती हैं, इसलिए सभी आवश्यक वस्तुएं एक ही स्थान पर मिल सकती हैं।
  • उत्पादों और कीमतों की तुलना करना आसान है। जैसा कि उत्पाद ऑनलाइन पाए जाते हैं, वे विवरण और विशेषताओं के साथ होते हैं, इसलिए उन्हें दो, तीन या अधिक ऑनलाइन स्टोर के बीच भी आसानी से तुलना की जा सकती है।
  • ई-कॉमर्स के सबसे बड़े फायदे की यदि बात करें तो वो यह है की यह सुविधा बढ़ाता है. कोई भी घर बैठी कुछ ही मिनट में टीवी, फ्रिज, और ए.सी, जैसे बड़े सामानो को भी आसानी से मंगा सकता है. अक्सर व्यस्त रहने वाले लोगों के लिए तो मानो ई-कॉमर्स वरदान के रूप में साबित हुआ है.अब पहले की तरह हर हफ्ते बिना बाजार गए भी लोग अपने ज़रूरतों को आसानी से पूरा कर सकते हैं और तो और अब कई वेबसाइट सब्ज़ियां और फल की भी डिलीवरी भी करती हैं. आर्डर प्लेस करने के कुछ ही घंटों में आप अपने घर बैठे ही सब्ज़ियां और फल प्राप्त कर सकते हैं.
  • बिज़नेस में दिलचस्पी रखने वाले लोग स्टार्ट-अप आसानी से कर सकते हैं. ऑनलाइन स्टोर खोलना फिजिकल स्टोर के मुकाबले बेहद आसान होता है और इसे आसानी से हैंडल किया जा सकता है. इसमें फंड्स भी काम लगाने पड़ते हैं और यह पार्ट-टाइम या फुल-टाइम जॉब का एक अच्छा विकल्प है.
  • ई-कॉमर्स का एक बड़ा फायदा यह है की इसमें आप किसी भी सर्विस का लाभ उठाने पर उसकी पेमेंट आसानी से कर सकते हैं. पेमेंट के लिए आपको कई विकल्प दिए जाते हैं. आप पैसे अपने बैंक अकाउंट से कटवा सकते हैं. आप यदि कोई प्रोडक्ट ऑनलाइन मंगवाते हैं तो आप उसकी पेमेंट डिलीवरी के वक़्त भी कर सकते हैं. अब कई वेबसाइट EMI पर पेमेंट करने का भी ऑप्शन देती हैं. इसमें आपको सारी धनराशि एक बार में नहीं बल्कि ब्याज के रूप में निर्धारित समय पर देनी होती है.
  • यदि आप किसी  प्रोडक्ट को ऑनलाइन खरीदते हैं तो आप उसकी कीमत और उसकी स्पेसिफिकेशन की  दूसरी वेबसाइट और सेलर से तुलना कर सकते हैं. इससे आपको प्रोडक्ट उचित दाम पर मिलता है. इसके अलावा आप कूपन की मदद से उस प्रोडक्ट पर छूट भी ले सकते हैं.
  • यदि डिलीवर हुआ सामन या प्रोडक्ट आपको पसंद नहीं आया या उसमे कोई डिफेक्ट है तो आप उसे आसानी से रेप्लस या रिटर्न कर सकते हैं. इसके लिए आपको सिर्फ वेबसाइट पर जाकर रिटर्न पर क्लिक करना होता है और एक क्लिक से आप उस प्रोडक्ट को निर्धारित समय में रिटर्न या रेप्लस कर सकते हैं.

 

 

ईकॉमर्स के नुकसान

 

  • गोपनीयता और सुरक्षा। यह एक समस्या हो सकती है यदि ऑनलाइन स्टोर ऑनलाइन लेनदेन को सुरक्षित रखने के लिए सभी सुरक्षा और गोपनीयता की स्थिति प्रदान नहीं करता है। कोई भी नहीं चाहता कि उनकी व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी सभी को दिखाई दे, इसलिए खरीदने से पहले साइट पर शोध करना आवश्यक है।
  • गुणवत्ता. इस तथ्य के बावजूद कि ईकॉमर्स पूरी खरीद प्रक्रिया को आसान बनाता है, एक उपभोक्ता वास्तव में उत्पाद को तब तक नहीं छू सकता है जब तक कि इसे घर पर वितरित नहीं किया जाता है।
  • छुपी कीमत। ऑनलाइन खरीदते समय, उपभोक्ता को उत्पाद की कीमत, शिपिंग और संभावित करों के बारे में पता होता है, लेकिन यह भी संभव है कि छिपी हुई लागतें खरीद चालान में नहीं दिखाई जाती हैं, लेकिन भुगतान के रूप में।
  • शिपमेंट में देरी। जबकि उत्पाद वितरण तेज है, मौसम की स्थिति, उपलब्धता और अन्य कारक उत्पाद शिपमेंट में देरी का कारण बन सकते हैं।
  • कई बार ऑनलाइन शॉपिंग करने पर कई सामन डिफेक्टिव या ख़राब निकल जाते हैं. यदि आप बाजार से कपडे लेते हैं, तो आप उसे फिजिकली छूकर चेक कर सकते हैं. इसके अलावा आप उसे चेंजिंग रूम में जा कर अपने ऊपर ट्राई भी कर सकते हैं। लेकिन ई-कॉमर्स की दुनिया में यह मुमकिन नहीं। आप प्रोडक्ट्स को फिजिकली चेक नहीं कर सकते. हालाँकि, डिफेक्टिव निकलने पर आप उन्हें रिटर्न या रेप्लस कर सकते हैं लेकिन यह पूरा प्रोसेस लम्बा खिंच जाता है.
  • कई बार प्रोडक्ट की शिपमेंट में अधिक समय लग जाता है जिससे हमें अपना प्रोडक्ट समय पर नहीं मिल पता। यह ई-कॉमर्स की सबसे बड़ी खामी है. शादी के लिए मंगाई हुई ड्रेस कई बार शादी हो जाने के बाद मिलती है. इससे कंस्यूमर को असुविधा झेलनी पड़ती है.
  • ऑनलाइन प्रोडक्ट खरीदते समय आपको कई पर्सनल डिटेल्स देनी पड़ती है जैसे क्रेडिट कार्ड डिटेल्स, अपना पर्सनल मोबाइल नंबर, और एड्रेस.ऐसी जानकारी किसी गलत हाथो में लगने से डाटा लीकेज जैसी समस्याएं हो सकती हैं. मैं आपको यह सलाह देना चाहूंगा की जब भी ऑनलाइन शॉपिंग करें तो हमेशा भरोसेमंद वेबसाइट से ही करें.

 

छोटे शहरों पर बड़ा दांव खेल रहीं ई-कॉमर्स कंपनियां

 

ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी वृद्धि को तेज करने के लिए छोटे शहरों पर बड़ा दांव लगा रही हैं. वे इन शहरों के व्यापक उपभोक्ता आधार का लाभ उठाने के लिए इन वहां अपने कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दे रही हैं. विशेषज्ञों ने यह राय व्यक्त की है. उनका कहना है कि इन कंपनियों की छोटे शहरों में नियुक्तियों में 15 प्रतिशत तक तेजी आने का अनुमान है.

 

ई-कॉमर्स कंपनियों पर कसा शिकंजा, फ्रॉड और मनमानी से बचाने वाली ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी

 

ई-कॉमर्स कंपनियों पर शिकंजा कसा. मोदी सरकार ने ग्राहकों को ई-कॉमर्स कंपनियों के फ्रॉड और मनमानी से बचाने वाली ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की है. नई गाइडलाइंस के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियों को शिकायत अधिकारी (Grievance Officer) की नियुक्ति करनी होगी. इसके अलावा 1 महीने में ग्राहकों की शिकायतों को सुलझाना होगा. ड्राफ्ट के अनुसार ग्राहकों को 14 दिन तक रिफंड मिल सकेगा.

 

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ई-कॉमर्स कंपनियों पर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी: नई ड्राफ्ट गाइडलाइंस के अनुसार स्टेकहोल्डर्स से 45 दिन के अंदर राय मांगी जाएगी. 16 सितंबर तक राय भेजे जा सकते हैं. नई गाइडलाइंस ग्राहकों को ई-कॉमर्स कंपनियों की मनमानी से बचाएंगी.

 

ई-कॉमर्स कंपनियों का फ्रॉड और कानूनी जवाबदेही :

 

चीन और अमेरिका की ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए स्मार्टफोन और इंटरनेट से लैस 135 करोड़ की आबादी वाला भारत सबसे मुफीद बाज़ार है। सन 2010 में ई-कॉमर्स का कारोबार लगभग 1 अरब डॉलर का था जो 2019 में 30 अरब डॉलर हो गया और 2024 में इसके 100 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। पिछले कई सालों से ई-कॉमर्स कंपनियां सरकारी नियमों को चार तरीके से ठेंगा दिखा रही हैं। पहला मार्केटप्लेस के नाम पर विदेशी एफडीआई हासिल करने के बाद ये कंपनियां स्थानीय साझेदारी की आड़ में विक्रेता बनकर खुद का माल बेचने लगीं।

 

दूसरा करोड़ों यूजर्स के डाटा के गैरकानूनी इस्तेमाल और अवैध विदेशी पूंजी के दम पर, धमाका सेल जैसे ऑफर्स के बल पर भारत के बाज़ार में एकाधिकार स्थापित कर लिया। तीसरा विज्ञापनों में कानूनी कंपनी व विक्रेता का पूरा विवरण नहीं देकर, क़ानून के शिकंजे से बचने की जुगत बनाई। चौथा कंपनियों के गिरोह के जरिए गैरकानूनी कारोबार की आमदनी पर टीडीएस और टैक्स की चोरी।

 

ई-कॉमर्स का अवैध कारोबारी मॉडल: ई-कॉमर्स की ग्रुप कंपनियों के कारोबारी खेल में बंदूक की नली, हत्था और कारतूस सब अलग-अलग होने के बावजूद मुनाफे के निशाने पर गोली लग जाती है और कोई कानूनी जवाबदेही नहीं बनती। ई-कॉमर्स कंपनियों की लॉबी ने प्रस्तावित नियमों का संगठित विरोध शुरू कर दिया है। गैर कानूनी तरीके से व्यापारिक एकाधिकार हासिल करने वाली ये कंपनियां हास्यास्पद तरीके से न्याय व खेलों में बराबरी की बात कर रही हैं।

 

आम जनता, उद्योग और व्यापार पर भारत में हजारों कठोर कानून लागू होते हैं तो फिर ई-कॉमर्स कंपनियों को खुले खेल की इजाजत कैसे दे सकते हैं? ई-कॉमर्स की तरह अवैध माइनिंग में भी बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलता है। लेकिन अवैध माइनिंग से पर्यावरण, नदियों और अर्थव्यवस्था को भारी क्षति होती है। इसी तरह से ई-कॉमर्स के अवैध कारोबारी मॉडल की वजह से देश के करोड़ों खुदरा दुकानदार और लघु उद्योगों के ऊपर कोरोना से भी बड़े संकट का साया मंडरा रहा है।

 

परंपरागत दुकानदारों और उद्यमियों को नगर पालिका, जीएसटी, इनकम टैक्स, पुलिस और लेबर इंस्पेक्टर के सैकड़ों नियमों का पालन करना पड़ता है। जबकि ई-कॉमर्स कंपनियां इंटरमीडियरी के नाम पर बच निकलती हैं। शिकायतों के बावजूद कार्रवाई नहीं: कई सालों से इन कंपनियों के खिलाफ सबूतों के साथ अनेक शिकायतें हुई हैं। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि फेमा व एफडीआई मामलों के उल्लंघन की जांच प्रवर्तन निदेशालय को सौंपी गई है।

 

आपत्तिजनक ट्वीट के शेयर करने के मामले पर ट्विटर के एमडी को पुलिस थाने में बुलाने के लिए पूरा सिस्टम बेताब है। लेकिन देश की अर्थव्यवस्था चौपट कर रही ई-कॉमर्स कंपनियों के गैर कानूनी कारोबार पर लगाम लगाने के लिए जुर्माना भी नहीं लगना, शोचनीय है। सरकार की कछुआचाल से लग रहा है कि कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहेे। इन कंपनियों के सामने यदि सरकारी सिस्टम लाचार है तो नए नियमों के तहत नियुक्त होने वाले शिकायत अधिकारी के सामने आम जनता के दुखड़ों का निवारण कैसे होगा? ई-कॉमर्स में एफडीआई किसकी है, भारत में माल कौन बेच रहा है, विज्ञापन कौन दे रहा है, कानूनी जवाबदेही किस कंपनी की है, इन बातों के खुलासे की कानूनी व्यवस्था बने, तभी इन कंपनियों पर कठोर कार्रवाई का अगला कदम बढ़ेगा।

 

ई-कॉमर्स पर संपूर्ण कानूनी डाइजेस्ट बने: ई-कॉमर्स के मुनाफे की जड़ में डाटा का खेल है। सुप्रीम कोर्ट के 4 साल पुराने फैसले के बावजूद डेटा सुरक्षा कानून पर सरकार कुंभकर्णी नींद सो रही है। ई-कॉमर्स में जनता के संवेदनशील और बैंकों के वित्तीय डाटा को भारत में रखने का कानून बने तो अर्थव्यवस्था सुरक्षित होने के साथ देश में रोजगार भी बढ़ेंगे। ई-कॉमर्स के मामलों में जीएसटी, इनकम टैक्स, सूचना प्रौद्योगिकी, फेमा, कंपनी, आरबीआई, पेमेंट और सेटेलमेंट सिस्टम्स जैसे अनेक कानूनों के प्रावधान बनाकर लागू करने की जिम्मेदारी सरकार के अलग-अलग विभागों की है।

 

वित्त मंत्रालय को इन कंपनियों पर टैक्स, कंपनी मंत्रालय को विदेशी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन, उपभोक्ता मंत्रालय को ग्राहकों की रक्षा, आईटी मंत्रालय को एप्स पर दंडात्मक कार्रवाई, कानून मंत्रालय को सख्त कानून, गृह मंत्रालय को चीन व टैक्स हेवन से आ रहे देश विरोधी निवेश की जांच के साथ ट्राई और रिज़र्व बैंक के कंधों पर इन कंपनियों के कारनामों पर सख्त निगाह रखने की जिम्मेदारी है।

 

विदेश व्यापार, आयात, निर्यात आदि विषयों पर देश में विशद कानून बने हैं। उसी तरीके से ई-कॉमर्स सेक्टर के सभी पहलुओं को एक जगह इकट्ठा करके संपूर्ण कानूनी डाइजेस्ट बनाना होगा। कोरे बयानों की बजाय डाटा चोरी व नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना और सख्त सजा देने के लिए विदेशों की तर्ज़ पर प्रभावी रेगुलेटर बने, तभी भारत में ई-कॉमर्स का प्रभावी नियमन हो सकेगा।

 

कैसे हो ई-कॉमर्स का प्रभावी नियमन?
 

पिछले कई सालों से ई-कॉमर्स कंपनियां सरकारी नियमों को ठेंगा दिखा रही हैं। कोरे बयानों की बजाय डाटा चोरी और नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माना और सख्त सजा देने के लिए विदेशों की तर्ज पर प्रभावी रेगुलेटर बने, तभी भारत में ई-कॉमर्स का प्रभावी नियमन हो सकेगा।

 

 



 

 

 

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