हाल ही में भारत सरकार ने वर्तमान की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को समाप्त करने की मंशा जताई है। फिलहाल हरियाणा व पुदुच्चेरी में यह प्रणाली समाप्त कर दी गई है और DBT के माध्यम से लाभ सीधे हितग्राहियों तक पहुँचाया जा रहा है। यदि इन दोनों जगहों पर यह मॉडल सफल होता है तो सरकार इसे पूरे देश में लागू कर सकती है। परंतु जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभ की पहुँच समरूप नहीं रही , तो यह संभावना बनती है कि इसे हटाने के बाद के प्रभाव भी समरूप न रहें। अतः इसे पूरे देश में लागू करने के पहले सरकार को इसके बाद के संभावित प्रभावों का गहन अध्ययन कर लेना चाहिये, क्योंकि यह मसला गरीबों की खाद्य सुरक्षा और पोषण से जुड़ा हुआ है।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर आवश्यक उपभोग की वस्तुएँ प्रदान करना है ताकि मूल्य वृद्धि के प्रभावों से उन्हें बचाया जा सके तथा नागरिकों में न्यूनतम पोषण की स्थिति को भी बनाए रखा जा सके। भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में वितरित की जाने वाली वस्तुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण चावल, गेंहू, चीनी और मिट्टी का तेल हैं। इस प्रणाली के खाद्यान्न उपलब्ध कराने वाली प्रमुख एजेंसी भारतीय खाद्य निगम है। निगम का कार्य अनाज व अन्य पदार्थों की खरीद, बिक्री व भंडारण करना है।यह योजना 1960 के दशक से शुरू की गयी थी, सबसे पहले इस योजना को सरकार द्वारा भारत के ग्रामीण क्षेत्र में जहां खाद्य पदार्थ की आपूर्ति बहुत कम थी, वहां कुछ दुकानें खोली गयी जिसे 1992 में सरकार द्वारा भारत के सभी ग्रामीण व शहरी क्षेत्रो में बड़े पैमाने पर खोला गया। आज भारत के लगभग हर क्षेत्र में यह दुकान आसानी से उपलब्ध है। इन दुकानों को सरकारी दुकान या उचित मूल्य की दूकान भी कहते हैं। देशभर में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन से उत्पन्न आर्थिक स्थितियां उन लोगों को बुरी तरह प्रभावित करेंगी, जो इस महामारी से तो शायद बच जाएंगे, लेकिन रोज़मर्रा की आवश्यक ज़रूरतों का पूरा न होना उनके लिए अलग मुश्किलें खड़ी करेगा. करोना काल में जन वितरण प्रणाली ने सम्पूर्ण भारत में खाद्य सामग्री को वितरित करके इस कठिन समय में एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी संभाली है कोविड के समय पीडीएस योजना नागरिकों के लिए इतनी महत्वपूर्ण कैसे हुई है, इसे समझने की कोशिश करते हैं
श्री दुखा पासवान जी, ऐसे प्रवासी हैं जो वर्षो बाद लॉकडाउन के समय बिहार लौटे थे, उस समय इनके पास राशन कार्ड नहीं था। इनके अनुसार, जब ये अनाज के लिए पास के पीडीएस की दूकान पर गए तो इन्हें अनाज नहीं दिया गया। हालांकि सरकार ने घोषणा की थी कि इस आपदा के समय में ऐसे परिवारों को भी अनाज उपलब्ध कराया जाएगा, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है।
वहीं वीरेंदर साव जी, गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवार के सदस्य हैं। इनके परिवार में 7 सदस्य हैं जिन्हें पीडीएस से अनाज मिलता आ रहा है। जैसा की कोरोना के समय बिहार सरकार ने यह घोषणा की थी की परिवार के सभी सदस्यों को 5 किलो अनाज मुफ्त में दो माह मई और जून में दिया जायेगा परन्तु इनके कथानुसार सिर्फ मई महीने का अनाज ही मुफ्त मिला।
इसमें कोई संदेह नहीं की जन वितरण प्रणाली कोविड के इस संकट में भी लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हुई है। वहीं इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि सरकार को इसकी चयन प्रक्रिया एवं लाभार्थियों तक इसकी पहुँच को सरल बनाया जाना चाहिए ताकि नागरिक इसका लाभ आसानी से उठा पाएं।
महामारी में जन वितरण प्रणाली की भूमिका :
सीएसई-एपीयू द्वारा संकलित 76 घरेलू सर्वेक्षण (सीएमआईई डेटा के साथ) एक अमूल्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। वे कोविड -19 संकट के मानवीय प्रभाव पर समृद्ध अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिसमें कई पहलू शामिल हैं जिनका ज़िक्र हमने यहां नहीं किया है, जैसे कि मनोवैज्ञानिक क्षति, बच्चों की भलाई, और हाशिए के समुदायों की दुर्दशा। जहां तक खाद्य सुरक्षा का संबंध है, कुछ बिंदु उपस्थित होते हैं।
सबसे पहले, यह बात स्पष्ट है कि अप्रैल-मई 2020 का राष्ट्रीय लॉकडाउन विनाशकारी खाद्य संकट से जुड़ा था। बड़ी संख्या में लोगों ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष किया, और बहुसंख्यक आबादी के लिए भोजन का सेवन गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों दृष्टि से कम हो गया। विशेष रूप से मांसाहारी वस्तुओं सहित पौष्टिक भोजन की खपत में तेज गिरावट आई।
दूसरा, जून 2020 के बाद से कुछ सुधार हुआ, जब लॉकडाउन में धीरे-धीरे ढील दी गई, लेकिन कठिनाई इससे आगे भी बनी रही। वर्ष के अंत में भी रोजगार, आय और पोषण स्तर अभी भी पूर्व-लॉकडाउन स्तरों से काफी नीचे थे।
तीसरा, राहत उपायों ने मदद की, लेकिन वे कमजोर थे, और उनकी प्रभावी पहुंच अनिश्चित है। 2020 में आबादी के एक बड़े हिस्से ने पीडीएस का उपयोग किया (आठ महीने के लिए बढ़े हुए मासिक राशन के साथ), और इसने सबसे खराब स्थिति को टालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन यह संभव है कि कुछ पूरक राशन डायवर्ट हो गया हो कम से कम शुरू में, और गरीब परिवारों की एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्या की राशन कार्ड नहीं होने के कारण पीडीएस तक पहुंच बिल्कुल भी नहीं थी। मनरेगा और नकद हस्तांतरण जैसे अन्य राहत उपायों की पहुँच भी सीमित ही रही । कोविड -19 संकट ने एक बार फिर से उजागर किया कि भारत को अधिक भरोसेमंद और व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली है।
कोविड-19 संकट के बीच प्रवासी मजदूरों का पलायन बड़े स्तर पर देखने को मिला। हालांकि ऐसे संकट में सरकार की दो प्रमुख नीतियों का विशेष योगदान रहा। पहला ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ और दूसरा ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने हर गांव-हर घर तक अनाज की उपलब्धता को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। भारत का सार्वजनिक वितरण प्रणाली नेटवर्क दुनिया में सबसे बड़ा है और देश के हर गांव तक मौजूद है। लॉकडाउन के दौरान देश की सबसे बड़ी समस्या यह थी की 70% आबादी को जरूरी सुविधाओं में से एक खाद्य सुविधाओं को कैसे उपलब्ध कराया जाए ? इस समय सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इस वितरण प्रणाली की सहायता से लोगों को जरूरी खाद्य सुविधाएं जैसे गेहूं, चावल, अनाज अर्थात राशन का सभी सामान 3 महीने के लिए मुफ्त में उपलब्ध करवाया गया जिससे लोगों में भागदौड़ कम हुई और लोगों ने शांतिपूर्वक लॉकडाउन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया
90 प्रतिशत से अधिक उपभोक्ताओं द्वारा प्रति महीना पॉश मशीन द्वारा राशन उठाव सुनिश्चित करने को कहा। राशन कार्ड से आधार नंबर सीडिंग करने को भी कहा । साथ ही उन्होंने कहा कि गोदाम से पीडीएस दुकानों पर राशन की खेप पहुंचते ही स्टॉप को पॉश मशीन पर तुरंत अपलोड करना सुनिश्चित करें। सभी पीडीएस विक्रेताओं से कहा कि खाद्यान्न वितरण में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी और अनावश्यक किसी जनवितरण विक्रेता को यदि परेशान किया जाएगा तो ऐसे परेशान करने वाले लोगों पर भी जांचोपरांत कार्रवाई की जा सकती है । उपभोक्ताओं को कोई शिकायत का मौका नहीं मिले ऐसा वे हर हाल में चाहेंगे।
केंद्र सरकार प्राथमिकता परिवारों और अंत्योदय परिवारों को 3 महीने की शुरुआती अवधि के लिए दोगुना राशन प्रदान करने हेतु अतिरिक्त स्टॉक का उपयोग कर सकती है, जिसे आपातकाल जारी रहने की स्थिति में बढ़ाया जा सकता है. कुछ राज्यों ने 1-2 महीने के लिए मुफ्त वितरण (उदाहरण के लिए कर्नाटक) और अग्रिम वितरण (उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़) की घोषणा की है.
केंद्र सरकार को वायरस फैलाव के जोखिम के कारण आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण (एबीबीए) को तुरंत रोका. इसी आधार पर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए आधार-आधारित उपस्थिति को बंद कर दिया है. आसपास की आंगनवाड़ियों और स्कूलों को घर पर सूखा राशन उपलब्ध करवाया राज्य भी इसी मॉडल को अपना सकते हैं.
शहरी क्षेत्रों के लिए उपाय ऊपर सूचीबद्ध उपायों के बाद भी कमजोर लोगों की एक महत्वपूर्ण श्रेणी छूट जाएगी: शहरी क्षेत्रों में प्रवासी के रूप में काम करने वाले लोग, जिनके घर ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. लॉकडाउन के कारण वे शहरी क्षेत्रों में काम के बिना फंस गए हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिनके पास आश्रय तक नहीं है. इन्हें मनरेगा या पीडीएस द्वारा भी कोई सहायता नहीं मिल सकती इसलिए उनके लिए विशेष उपायों किए.
2021-22 के केंद्रीय बजट की घोषणा के कुछ सप्ताह बाद, कोविड -19 की दूसरी लहर ने देश को पूरी ताकत से प्रभावित किया। आजीविका का संकट 2020 की तुलना में 2021 में बदतर हो भी सकता है और नहीं भी। इस बार कोई राष्ट्रीय लॉकडाउन नहीं है, लेकिन देश भर में अलग-अलग तीव्रता और अवधि के स्थानीय लॉकडाउन हैं। और कुछ मायनों में आज परिस्थितियां अधिक चुनौतीपूर्ण हैं। लोगों का भंडार समाप्त हो गया है और कई भारी कर्ज में डूबे हुए हैं। संक्रमण और मौतों की संख्या 2020 की तुलना में बहुत अधिक है, जिससे बड़ी संख्या में परिवारों को भारी स्वास्थ्य व्यय का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, अगर उन्हें अपने परिवार के कमाने वाले सदस्य को खो न दिया हो
पिछले साल के दुखद मानवीय संकट की पुनरावृत्ति से बचने के लिए राहत उपायों की एक दूसरी और मजबूत लहर आवश्यक है।लेकिन इन सब बातों के बावजूद भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इस वितरण प्रणाली की सहायता से लोगों को जरूरी खाद्य सुविधाएं जैसे गेहूं, चावल, अनाज अर्थात राशन का सभी सामान मुफ्त में उपलब्ध करवाया गया जिससे लोगों में भागदौड़ कम हुई और लोगों ने शांतिपूर्वक लॉकडाउन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया