इंडोनेशिया कच्चे पाम-ऑयल का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक (Indonesia Biggest Producer of CPO) है. इसके बावजूद वह पाम-ऑयल संकट (Indonesia Palm Oil Crisis) से जूझ रहा है. आलम ये है कि वहां पाम-ऑयल की कीमतें की सोने की तरह हो गई हैं. मार्च-2022 में वहां 1 लीटर ब्रांडेड रिफाइंड पाम-ऑयल की कीमत 22,000 रुपए (इंडोनेशियाई मुद्रा) तक जा पहुंची है. जबकि बीते साल मार्च में इसी उत्पाद की कीमत 14,000 रुपए तक थी. इंडोनेशिया में पाम-ऑयल की इन आसमान छूती कीमतों का असर पूरी दुनिया पर दिख रहा है. स्वाभाविक रूप से भारत पर भी क्योंकि इंडोनेशिया दुनिया के तमाम देशों को सबसे अधिक सीपीओ का निर्यात (Biggest Exporter of CPO) भी करता है. जाहिर तौर पर अन्य वनस्पति तेलों (Vegetable Oils) पर भी प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही, आम आदमी पर भी क्योंकि वनस्पति तेल हर घर के खान-पान का अभिन्न हिस्सा हैं. इसीलिए इंडोनेशिया के पाम-ऑयल संकट (Indonesia Palm Oil Crisis) से जुड़े पहलुओं को समझते हैं
इस साल जनवरी के आख़िर में इंडोनेशिया ने पाम ऑयल के निर्यात को सीमित कर दिया था. मार्च में इस पर लगी रोक तो हटा ली गई लेकिन तब तक अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पाम ऑयल की कीमतें आसमान छू रही थीं. रूस यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद से बढ़ती महंगाई के मद्देनज़र खाने के सामान की कमी की स्थिति से बचने के लिए कई मुल्क अपनी फसलों को बचाने के लिए कदम उठा रहे हैं. इंडोनेशिया का ये फ़ैसला भी इसी दिशा में लिए गए कदम के तौर पर देखा जा रहा है. इंडोनेशिया के फ़ैसले के कारण चिंता बढ़ गई है. इसी वक्त अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सोयाबीन के तेल की कीमतें भी बढ़ी हुई हैं. सूरजमुखी के तेल के मामले में यूक्रेन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है और रूस यूक्रेन युद्ध के कारण यहां से होने वाले निर्यात पर असर पड़ा है. दुनिया की ज़रूरत के 76 फीसदी सूरजमुखी के तेल का व्यापार ब्लैक सी के रास्ते होता है लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले से ये व्यापार बुरी तरह बाधित हुआ है. ऐसे में लोगों की उम्मीदें सोयाबीन और पाम ऑयल पर थीं.रसोई में इस्तेमाल के मामले में सोयाबीन के तेल को पाम ऑयल के अच्छा विकल्प के तौर पर देखा जाता है.लेकिन कुछ सप्ताह पहले वेजिटेबल ऑयल के मामले में दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक अर्जेंन्टीना ने सोयाबीन के तेल पर निर्यात को लेकर रजिस्ट्रेशन बंद करने की घोषणा की थी. इस कदम के साथ उसने साल 2021-22 में लगाई गई फसल के निर्यात पर रोक लगी दी थी.
इंडोनेशिया और मलेशिया मिलकर वैश्विक पाम ऑयल का लगभग 90% का उत्पादन करते हैं, इसमें भी इंडोनेशिया की हिस्सेदारी अधिक है जिसने वर्ष 2021 में 45 मिलियन टन पाम ऑयल का उत्पादन किया। पाम ऑयल उद्योग आलोचना के दायरे में आ गया है क्योकि इसके निरंतर उत्पादन के कारण वनों की कटाई में वृद्धि हुई है, साथ ही श्रम के शोषणकारी तरीकों के कारण औपनिवेशिक युग जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। हालांकि पाम ऑयल को इसलिये भी पसंद किया जाता है क्योंकि यह सस्ता है; सोयाबीन जैसे कुछ अन्य वनस्पति तेल संयंत्रों की तुलना में पाम ऑयल का प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन होता है।
राष्ट्रपति जोको विडोडो (Joko Widodo) ने खाना पकाने के तेल और इसके कच्चे माल के शिपमेंट को रोकने की घोषणा की है. इसके बाद इंडोनेशिया ने 28 अप्रैल से अगले आदेश तक पाम तेल के निर्यात पर बैन लगा दिया है. जोको विडोडो ने कहा कि पॉलिसी का उद्देश्य घर पर खाद्य प्रोडक्ट्स की उपलब्धता सुनिश्चित करना है. उन्होंने कहा, “मैं इस पॉलिसी के कार्यान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन करूंगा ताकि घरेलू बाजार में खाना पकाने के तेल की उपलब्धता प्रचुर और सस्ती हो जाए.”
पाम ऑयल:
पाम ऑयल एक खाद्य वनस्पति तेल है जिसे ऑयल पाम फल (Fruit of the Oil Palms) के मेसोकार्प (लाल गूदे) से प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग खाना पकाने, सौंदर्य प्रसाधन, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, केक, चॉकलेट, स्प्रेड, साबुन, शैम्पू और सफाई उत्पादों से लेकर जैव ईंधन तक हर चीज़ में किया जाता है।बायोडीज़ल (Biodiesel) बनाने में कच्चे पाम ऑयल के इस्तेमाल को 'ग्रीन डीज़ल' करार दिया गया है। हालांकि पाम ऑयल को इसलिये भी पसंद किया जाता है क्योंकि यह सस्ता है; सोयाबीन जैसे कुछ अन्य वनस्पति तेल संयंत्रों की तुलना में पाम ऑयल का प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन होता है।
इंडोनेशिया जो कि विश्व का सबसे बड़े पाम ऑयल (Palm Oil) उत्पादक, निर्यातक और उपभोक्ता देश है, द्वारा घोषणा की गई है कि वह खाना पकाने के तेल की घरेलू कमी तथा इसकी बढ़ती कीमतों को कम करने हेतु कमोडिटी और इसके कच्चे माल के सभी निर्यातों पर प्रतिबंध लगाएगा। भारत अपनी पाम ऑयल की सालाना ज़रूरत का आधा हिस्सा यानी 8.3 मिलियन टन का आयात इंडोनेशिया से करता है। इस प्रकार इंडोनेशिया द्वारा आरोपित निर्यात प्रतिबंध भारत के हितों को प्रभावित करेगा।
वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं हेतु पाम ऑयल का महत्त्व:
संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, वर्ष 2020 में पाम ऑयल का वैश्विक उत्पादन 73 मिलियन टन (MT) से अधिक होने के साथ ही यह विश्व में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला वनस्पति तेल है। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में इसका उत्पादन 77 मीट्रिक टन होने का अनुमान है। रॉयटर्स के अनुसार, सबसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले चार प्रमुख खाद्य तेलों (पाम, सोयाबीन, रेपसीड (कैनोला) और सूरजमुखी का तेल) की वैश्विक आपूर्ति में पाम ऑयल की हिस्सेदारी 40% है। वैश्विक रूप से पाम ऑयल की 60% आपूर्ति इंडोनेशिया द्वारा की जाती है।
खाद्य तेलों / पाम ऑयल की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण:
1 निजी कारोबारियों ने इंडोनेशिया में बढ़ाईं पाम-ऑयल की कीमतें:
इंडोनेशिया के सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, साल-2020 के दौरान देश में 4.48 करोड़ टन सीपीओ का उत्पादन हुआ. इसमें 60% उत्पादन निजी कंपनियों ने किया. शेष 34% आम किसानों और बाकी 6% सरकारी कंपनियों ने. मतलब, देश के कुल सीपीओ उत्पादन (CPO Production) में लगभग पूरा निजी कारोबारियों, किसानों की है. जानकार बताते हैं कि घरेलू और वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए इन्हीं कारोबारियों ने इंडोनेशिया में पाम-ऑयल का संकट खड़ा किया है. वहां के व्यापार मंत्री मुहम्मद लुत्फी खुद हाल ही खाद्य-तेल माफिया को इस संकट का जिम्मेदार बता चुके हैं.
2 सबसे बड़ी वैश्विक परिस्थिति रूस-यूक्रेन और अमेरिका-चीन :
अर्थव्यवस्था के जानकारों के अनुसार इंडोनेशिया के निजी पाम-ऑयल कारोबारियों ने जिन वैश्विक-परिस्थितियों पर गौर किया उनमें एक प्रमुख रही, रूस-यूक्रेन की लड़ाई (Russia-Ukraine Conflict). रूस ने यूक्रेन पर हमला भले 24 फरवरी को किया, लेकिन उसने यूक्रेनी सीमा पर अपनी सेना महीनों पहले से तैनात कर दी थी. वहीं से गड़बड़ शुरू हुई. चूंकि रूस-यूक्रेन मिलकर दुनिया को करीब 75% सूरजमुखी तेल (Sunflower-Oil) की आपूर्ति करते हैं. और उनके बीच तनाव से इसकी आपूर्ति प्रभावित हो गई, तो कच्चे पाम-ऑयल (CPO) की मांग अधिक होने लगी. इसके साथ ही अमेरिका-चीन के बीच व्यावसायिक झगड़ा (US-China Trade Dispute) जारी रहा. इससे चीन ने अमेरिका से सोयाबीन खरीदना कम कर दिया. उसकी जगह पाम-ऑयल का आयात और उपभोग बढ़ाया. फिर ब्राजील और भारत जैसे सोयाबीन के बड़े उत्पादक, निर्यातक देशों में खराब मौसम की वजह से इसका उत्पादन कम रहा. इस सबका मिला-जुला नतीजा ये हुआ कि पूरी दुनिया में सीपीओ की मांग में जबर्दस्त इजाफा हुआ.
3 वैकल्पिक वनस्पति तेलों की कम आपूर्ति:
भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है। वैकल्पिक वनस्पति तेलों की कम आपूर्ति के कारण मांग बढ़ने से इस वर्ष पाम ऑयल की कीमतों में तेज़ी आई है। सोयाबीन तेल का दूसरा स्थान है जिसका सबसे अधिक उत्पादन किया जाता है, इसके भी इस साल प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि इसके प्रमुख उत्पादक अर्जेंटीना में सोयाबीन उत्पादन हेतु इस बार मौसम अनुकूल नहीं है। पिछले साल कनाडा में सूखे के कारण कैनोला तेल का उत्पादन प्रभावित हुआ था और सूरजमुखी तेल जिसका 80-90% उत्पादन रूस और यूक्रेन द्वारा किया जाता है, की आपूर्ति जारी संघर्ष के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई है।
4 इंडोनेशिया सरकार ने कीमतें थामने की कोशिश तो जमाखोरी शुरू:
देश में आसमान छूती पाम-ऑयल की कीमतों को इंडोनेशिया की सरकार ने थामने की कोशिश. उसने 1 लीटर ब्रांडेड रिफाइंड पाम-ऑयल की अधिकतम कीमत 14,000 इंडोनेशियाई रुपए तय कर दी. सीपीओ की अधिकतम कीमत भी 9,300 रुपए प्रति किलोग्राम तय कर दी गई. साथ ही यह भी सुनिश्चित कर दिया कि आम आदमी एक बार में 2 लीटर ही सामान्य तेल (Non-Refined) खरीद सके. इसके अलावा सीपीओ-निर्यातकों के लिए अनिवार्य किया गया कि वे 30% अपना उत्पाद घरेलू बाजार में बेचेंगे. ताकि घरेलू आपूर्ति पर्याप्त रहे. पहले यह सीमा 15-20% थी. इस सबका वहां के निजी कारोबारियों ने विरोध किया है और पाम-ऑयल की जमाखोरी शुरू कर दी है. मतलब वे न तो घरेलू बाजार के लिए पर्याप्त आपूर्ति कर रहे हैं और न ही निर्यात के लिए.
4 वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति
महामारी से प्रेरित श्रम की कमी तथा महामारी और यूक्रेन संकट से जुड़ी वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति के कारण खाद्य तेल की वैश्विक कीमतों में पिछले साल के अंत से बहुत अधिक वृद्धि हुई है।
ग्लोबल मार्केट में बढ़ सकती हैं कीमतें:
इंडोनेशिया द्वारा बैन की घोषणा के बाद अमेरिकी सोया तेल वायदा 3 फीसदी से ज्यादा उछलकर 84.03 सेंट प्रति पाउंड के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया. ट्रेड बॉडी सॉल्वेंट एक्ट्रेक्टर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी को बताया कि यह कदम पूरी तरह से अप्रत्याशित और दुर्भाग्यपूर्ण है. इस कदम से न केवल सबसे बड़े खरीदार भारत में बल्कि विश्व स्तर पर उपभोक्ताओं को नुकसान होगा, क्योंकि पाम दुनिया का सबसे अधिक खपत वाला तेल है.
भारत पर प्रभाव:
भारत हर वर्ष करीब 13 से 13.50 मिलियन टन खाने के तेल का आयात करता है. जिसमें 63 फीसदी हिस्सेदारी यानि 8 से 8.50 मिलियन टन पाम ऑयल की हिस्सेदारी है. 63 फीसदी आयात किए जाने पाम ऑयल में 45 फीसदी इंडोनेशिया से आयात किया जाता है. महंगे कीमतों के चलते 2021-22 में खाने के तेल का आयात 1.5 मिलियन टन से घटकर 1.3 मिलियन टन रह गया. फिर भी कीमतों में उछाल के चलते 2021-22 में खाने के तेल के आयात पर 1.4 लाख करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा है जबकि उससे पहले साल में 82,123 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा था. पाम ऑयल दुनिया में सबसे अधिक खपत होने वाला खाना पकाने का तेल है, जो वैश्विक खपत का 40 फीसदी है. इसके बाद सोया तेल की बारी आती है जिसकी खपत 32 फीसदी और उसके बाद सरसों (या कैनोला) की जिसकी खपत 15 फीसदी है. इससे उन लोगों की संख्या में वृद्धि होगी जो पहले से ही रिकॉर्ड-उच्च थोक मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं। यह महत्त्वपूर्ण है कि पिछले साल केंद्र ने भारत के घरेलू पाम ऑयल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन-पाम ऑयल को आरंभ किया।
भारत सरकार ने किए ताबड़तोड़ उपाय:
महंगाई के साप्ताहिक, मासिक आंकड़े बताते हैं कि इंडोनेशिया के पाम-ऑयल संकट (Indonesia Palm-oil Crisis) ने भारत में भी खाद्य तेल की कीमतों में 20-25% तक की बढ़ोत्तरी की है. इन्हें थामने के लिए सरकार ने कई वैकल्पिक इंतजाम किए हैं. जैसे- पाम-ऑयल के आयात पर सीमा शुल्क कम किया है. पहले रिफाइंड पाम ऑयल पर यह शुल्क 19.25% था. अब 13.75%% लग रहा है. साथ ही सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल का आयात बढ़ाया है. जैसे- जनवरी में ही 3.91 लाख टन सोयाबीन का तेल आयात किया गया. जबकि बीते साल जनवरी में 88,667 टन सोयाबीन तेल ही आयात किया गया था. इसी तरह सूरजमुखी का तेल भी जनवरी में 3.07 लाख टन मंगवाया गया. यह बीते साल की जनवरी में 2.05 लाख टन था. ‘बिजनेस टुडे’ की 29 मार्च की एक खबर के मुताबिक, भारत ने हाल ही में रूस से 45,000 टन सूरजमुखी का तेल आयात किया है. वह भी 2,150 डॉलर (1.63 लाख भारतीय रुपए लगभग) प्रति टन की रिकॉर्ड कीमत पर. जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले यही कीमत 1,630 डॉलर (1.23 लाख रुपए करीब) प्रति टन थी. भारत को अपनी खरीद के साथ-साथ आवश्यकताओं में भी विविधता लानी चाहिये। सर्वप्रथम भारत को अन्य देशों से अधिक पाम ऑयल की खरीद पर ध्यान देना चाहिये। साथ ही साथ साल, महुआ, जैतून, जटरोफा, नीम, जोजोबा, जंगली खुबानी, अखरोट आदि जैसे वृक्षों से उत्पन्न तिलहन (TBOs) को एक विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।इस तरह के उपायों से सरकार को उम्मीद है कि वह भारत में खाद्य-तेलों की कीमतें काबू से बाहर नहीं होने देगी. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना: भारत की खाद्य आवश्यकताओं के लिये पाम ऑयल से संबंधित लाभों को देखते हुए, भारतीय किसानों को देश में पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। इस दिशा में उठाया गया खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन- पाम ऑयल एक सही कदम है।