भारत की शिक्षण पद्धति / Education System Of India

" शिक्षा का उद्देश्य एक बाल्टी भरना नहीं, वर्ण ये एक अग्नि  प्रकाश है "- विलियम बैटलर यीट्स 

“ शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी मांगना नहीं, नौकरी देने का भी होना चाहिए “- Dr. Mamta Sharma

 

भारत सदैव ज्ञान में लीन रहने के कारण, विश्व गुरु कहलाता है| ज्ञान की सक्रियता और अधिकता के कारण भारत में अनेक समृद्ध विश्वविद्यालय जैसे नालंदा और तक्षशिला और कई सारे गुरुकुल हुआ करते थे | भारत में ज्ञान गुरुकुल शिक्षण व्यवस्था से दिया जाता था जिसमे चिकित्सा, खगोल, रसायन शास्त्र, भौतिक व्याकरण जैसे कई विषय सम्मिलित हुआ करते थे|  

 

1868 में ब्रिटेन में पारित नियम के आधार पर भारत में पहला विद्यालय खुलने के साथ ही भारत में विद्यमान सभी गुरुकुलों को अमान्य कर दिया गया | धीरे धीरे भारतीय शिक्षण व्यवस्था का विनाश की ओर जाने लगी  | मैकाले के लिखे पत्र के अनुसार अगर भारत पर ब्रिटेन को राज करना है तो भारत की शिक्षण पद्धति को समाप्त करना होगा , क्योंकि उस समय उत्तर भारत की साक्षरता दर 94% तथा दक्षिण भारत की साक्षरता दर 98% रहा करती थी | चूँकि गुरुकुल में शिक्षा संस्कृत व  आम भाषा में दी जाती थी तो लोगो की पकड़ शिक्षा पर अधिक हुआ करती थी | गुरुकुलों के अवैध हो जाने से भारत में जो शिक्षण व्यवस्था थोपी गई,  वह अंग्रेजी थी | इस कारण ब्रिटिश भारतियों को अनपढ़ माना करते थे | 

 

खैर भारत 1947 में स्वतंत्र हो चूका है और यह शिक्षा पद्धति हमारे जीवन का अंग बन चुकी है | जो शिक्षा पद्धति  अंग्रेजो ने नौकरशाही और राज करने के उद्देश्य से चालू की वह आज भी चल रही है | हालाँकि कुछ सुधार भी इस पद्धति में हुआ है | वर्तमान प्रचलित भारतीय शिक्षण प्रणाली के कुछ गुण व दोष है | 

 

भारतीय शिक्षण प्रणाली के कुछ गुण 

 

भारतीय शिक्षण प्रणाली हमे बहुत से विकल्प देती है जैसे अपना क्षेत्र चुनने की, प्रतिस्पर्धा पर बल देती है जिससे सीखने की क्षमता बढ़ती है, अर्थशास्त्र व अंग्रेजी जैसे विषय लोगों और समूचे विश्व से जोड़ने में सहायक होते है, छात्रों को कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है जो हमारी कई कमजोरी और ताकत सामने लाती है, कई परीक्षा के होने से धीमा सीखने वाले विद्यार्थियों की क्षमता का विकास होता है, ज्यादा विषय पढ़ने से समझ शक्ति का विकास होता है | 

 

भारतीय शिक्षण प्रणाली के कुछ दोष 

 

वर्तमान भारतीय शिक्षण प्रणाली में अनेक दोष भी है जो व्यक्ति व राष्ट्र के विकास में बाधक है | जैसे  - वर्तमान शिक्षण में  व्यावहारिक ज्ञान व नैतिकता का आभाव है, वर्तमान शिक्षण प्रणाली अंको की उत्कृष्ठता से व्यक्तित्व का मूल्याङ्कन करती है जिससे व्यक्ति में हीन भाव आता है, भारत कई सारे विद्यार्थियों को शिक्षा मातृभाषा से भिन्न - भिन्न माध्यम में करनी पड़ती है जिससे विद्यार्थियों को दोहरा जीवन जीना पड़ता है इसके साथ ही विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान नहीं दिया जाता है,कौशल या कारगर शिक्षा का आभाव है जिससे व्यापार को प्रगति दी जा सके, भारतीय शिक्षण पद्धति नौकर बनाने की और प्रेरित करती है जिससे बेरोजगारी और अपराध में वृद्धि होती है, भारत सरकार  शिक्षण व्यवस्था पर अपने सकल घरेलु उत्पाद का 3% ही खर्च करती है जो की बहुत कम है | जिससे मूलभूत आवश्यकताओं की कमी है, निजी संस्थानों के शुल्क पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होने के कारण  शिक्षा पद्धति अत्यधिक महंगी है |  जिससे कई माता-पिता शिक्षण शुल्क देने में असमर्थ होते है और उनके बच्चे अशिक्षित रह जाते है, अयोग्य अध्यापक, उनका वेतन, भ्रष्टाचार, अच्छे अध्यापको की कमी, आदि भी शिक्षण प्रणाली में बाधक है, अध्यापको से शिक्षण के अतिरिक्त कार्य भी करवाए जाते है जो आवश्यक नहीं, शिक्षकों को आए दिन पल्स पोलियो, जनगणना, चुनावी ड्यूटी इत्यादि में लगा दिया जाता है।  रचनात्मकता  को बढ़ावा नहीं दिया जाता है, दैनिक जीवन के संघर्षों से निपटने हेतु कोई प्रावधान नहीं है I एक / दो शिक्षक सभी कक्षा को पढ़ाते हैं। कई स्कूलों में शिक्षक दिन भर मिड डे मील की व्यवस्था में ही `लगे रह जाते हैं। शिक्षकों की नियुक्तियों में भी भारी धांधली होती है। अक्सर अयोग्य शिक्षक नियुक्त कर लिए जाते हैं। फिर शिक्षकों के प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं होती।

 

उपरोक्त गुण व दोषो से पता चलता है की भारतीय शिक्षण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता अधिक है | नियमो में बदलाव करने की आवश्यकता है जो शिक्षण प्रणाली को उतकृष्ट बनाने में बाधक है | ऐसा नहीं है कि इतने सालों में लोगों ने सुधार का प्रयत्न नहीं किया | कई शिक्षाविदों, कई जानकारों ने शिक्षण प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए अपने विचार भी व्यक्त किये है | जैसे  पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने कहा था कि हमारी शिक्षा पद्धति को कुछ सुधारों की आवश्यकता है जो व्यवहारिकता और ज्ञान की आत्मा दोनों के संदर्भ में है | उन्होंने सदैव कौशल आधारित शिक्षा को शामिल करने पर जोर दिया |  उनके अनुसार वर्तमान शिक्षा प्रणाली का आधार बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करना वाला हो न की रोजगार चाहने वाला |  वहीँ बाल गंगाधर तिलक ने  शिक्षा के संदर्भ में जो बाते कही वो आज भी सटीक बैठती है जैसे शिक्षा में कौशल शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए, शिक्षा में नैतिकता का समावेश किया जाना चाहिए | राजनीतक ज्ञान व तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए जिससे विद्यार्थी राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का भान हो सके |

 

मेरे विचार से हमे शिक्षा में सुधार का आकलन विश्व के दूसरे देशो से सीख कर भी करना चाहिए जैसे भारत सरकार को अपने घरेलू सकल उत्पाद का 5-7% शिक्षा के क्षेत्र में निवेश किया जाना चाहिए जिसमे बुनियादी ढाँचे , योग्य अध्यापको को बढ़ावा, शिक्षकों का प्रशिक्षण का समावेश शामिल होना चाहिए | नियमो में इस तरह बदलाव करके  निजी शैक्षणिक संस्थाओं का समन्वय सरकारी संस्थाओं से करना चाहिये |  शिक्षण विधि में रचनात्मकता को बढ़ावा देना होगा | छात्रों को दुनिया की समाजिक, राजनैतिक और आर्थिक समस्याओं  से अवगत करवाना होगा| प्रत्येक क्षेत्र के सफल व्यक्तित्वों को पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा जिससे छात्र उनसे स्व प्रेरणा ले कर आगे बढ़ सके | कहते है शिक्षा, जीवन मे उत्थान का स्रवश्रेष्ठ माध्यम है , इस कथन को चरितार्थ करते हुए शिक्षण प्रणाली को अग्रसर करना होगा जिससे राष्ट्र सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्तर पर अग्रसर व विकसित हो सके | 

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