वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में वर्ष 2022-23 के लिए जम्मू-कश्मीर के लिए 1.42 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया। बजट पेश करते हुए, सीतारमण ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 (Artical 370) को निरस्त करने से राज्य में 890 केंद्रीय कानूनों को लागू किया गया। 70 साल से अधिक जम्मू-कश्मीर के लोगों को जो नकारा गया, वह उन्हें दिया जाएगा. इसने सक्षम किया है कि डॉ अंबेडकर ने एससी/एसटी के लिए देश के बाकी हिस्सों के लिए जो दिया था वह अब जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए उपलब्ध है. सीतारमण ने वर्ष 2021-22 के लिए केंद्र शासित प्रदेश के लिए कुल 18,860.32 रुपये करोड़ की अनुपूरक मांगें भी पेश कीं और सदन को उसी दिन चर्चा करने की अनुमति देने के लिए कुछ नियमों को निलंबित करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया।
भारतीय सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए साल 2019 को देश से विवादित अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया गया था। जिसकी शुरुआत कश्मीर के राजा हरि सिंह से हुई थी। अक्टूबर 1947 में, कश्मीर के तत्कालीन महाराजा, हरि सिंह ने एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया कि तीन विषयों के आधार पर यानी विदेश मामले, रक्षा और संचार पर जम्मू और कश्मीर भारत सरकार को अपनी शक्ति हस्तांतरित करेगा। आइए जानते हैं विवादित अनुच्छेद 370 क्या है।
इतिहास
मार्च 1948 में, महाराजा ने शेख अब्दुल्ला के साथ प्रधान मंत्री के रूप में राज्य में एक अंतरिम सरकार नियुक्त की। जुलाई 1949 में, शेख अब्दुल्ला और तीन अन्य सहयोगी भारतीय संविधान सभा में शामिल हुए और जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति पर बातचीत की, जिससे अनुच्छेद 370 को अपनाया गया। विवादास्पद प्रावधान शेख अब्दुल्ला द्वारा तैयार किया गया था।
कानून निरस्त होने से पहले धारा 370 के प्रावधान क्या थे?
1. संसद को राज्य में कानून लागू करने के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता है - रक्षा, विदेशी मामलों, वित्त और संचार के मामलों को छोड़कर।
2. जम्मू और कश्मीर के निवासियों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग है। अनुच्छेद 370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं। अनुच्छेद 370 के तहत, केंद्र को राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की कोई शक्ति नहीं है।
3. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अनुच्छेद 370 (1) (सी) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 अनुच्छेद 370 के माध्यम से कश्मीर पर लागू होता है। अनुच्छेद 1 संघ के राज्यों को सूचीबद्ध करता है। इसका मतलब है कि यह अनुच्छेद 370 है जो जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संघ से जोड़ता है। अनुच्छेद 370 को हटाना, जो राष्ट्रपति के आदेश द्वारा किया जा सकता है, राज्य को भारत से स्वतंत्र कर देगा, जब तक कि नए अधिभावी कानून नहीं बनाए जाते।
क्या था जम्मू और कश्मीर का संविधान?
जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 3 में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा। अनुच्छेद 5 में कहा गया कि राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्ति उन सभी मामलों तक फैली हुई है, जिनके संबंध में संसद को भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति है। संविधान 17 नवंबर 1956 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1957 को लागू हुआ था। 5 अगस्त 2019 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश, 2019 (सीओ 272) द्वारा जम्मू और कश्मीर के संविधान को निष्प्रभावी बना दिया गया था।. 72 सालों तक जम्मू कश्मीर और देश के बीच अनुच्छेद 370 की जो फांस थी, जिसे 2 साल पहले इतिहास बना दिया गया और एक नए कश्मीर की कहानी लिख दी.
5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अहम खंडों को निष्प्रभावी कर दिया। साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया। आइए इससे जुड़े कुछ खास सवाल और उनका जवाब जानते हैं...
आर्टिकल 370 क्या है?
जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ कैसा संबंध होगा, इसका मसौदा जम्मू-कश्मीर की सरकार ने ही तैयार किया था। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 27 मई, 1949 को कुछ बदलाव सहित आर्टिकल 306ए (अब आर्टिकल 370) को स्वीकार कर लिया था। फिर 17 अक्टूबर, 1949 को यह आर्टिकल भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया। ध्यान रहे कि संविधान को 26 नवंबर, 1949 को अंगीकृत किया गया था। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 और 35ए के प्रावधान 17 नवंबर, 1952 से लागू थे। ये अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर और यहां के नागरिकों को कुछ अधिकार और सुविधाएं देते थे, जो देश के अन्य हिस्सों से अलग हैं। 'इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ ऐक्सेशन ऑफ जम्मू ऐंड कश्मीर टु इंडिया' की शर्तों के मुताबिक, आर्टिकल 370 में यह उल्लेख किया गया कि देश की संसद को जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश मामले और संचार के सिवा अन्य किसी विषय में कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा। साथ ही, जम्मू-कश्मीर को अपना अलग संविधान बनाने की अनुमति दे दी गई। जब सरकार अनुच्छेद-370 के अधिकांश प्रावधानों को निरस्त कर दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया तो वहां की राजनीतिक तस्वीर ही बदल गई। साथ ही साथ यहां के नागरिकों को मिलने वाले कुछ विशेष अधिकारों और सुविधाओं में भी कटौती हुई। यहां जानिए, वे कौन सी अहम चीजें हैं जो बदल गईं ...
आर्टिकल 370 की अब क्या स्थिति है?
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5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के एक खंड को छोड़कर बाकी को निष्प्रभावी कर दिया था। अनुच्छेद-370 के प्रावधान निरस्त करने के साथ जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था हालांकि, अभी वहां विधानसभा नहीं है। जम्मू-कश्मीर दिल्ली और पुड्डुचेरी की तर्ज पर विधानसभा युक्त केंद्र शासित प्रदेश है। जबकि लद्दाख चंडीगढ़ की तरह बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है।
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पहले कश्मीर में हिंदू-सिख अल्पसंख्यकों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था। अब अनुच्छेद-370 के प्रावधान निरस्त होने से वहां भी अल्पसंख्यकों को आरक्षण का लाभ मिल पा रहा है। वहीं, अनुच्छेद-35A के जरिए जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते थे। जैसे -
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इस प्रावधान के अनुसार, 14 मई, 1954 या इससे पहले 10 सालों से राज्य में रहने वालों और वहां संपत्ति हासिल करने वालों को ही जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक बताया गया था। इन निवासियों को विशेष अधिकार प्राप्त होते थे।
क्या अब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लग सकता है?
हां, अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां राष्ट्रपति शासन लग सकता है। पहले राष्ट्रपति के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था यानी वहां राष्ट्रपति शासन नहीं, बल्कि राज्यपाल शासन लगता था। अब वहां राष्ट्रपति शासन लग सकेगा।
क्या अब जम्मू-कश्मीर में वित्तीय आपातकाल लग सकेगा?
भारतीय संविधान की धारा 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है। वो भी जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होता था। अब यहां वित्तीय आपातकाल लागू हो सकेगा।
अब जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल कितने सालों का होगा?
जम्मू कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। अनुच्छेद-370 हटने के बाद यहां भी विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होगा
जम्मू-कश्मीर में इसके हटने से और क्या बदलाव हुए?
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कश्मीर में अल्पसंख्यकों को आरक्षण नहीं मिलता था लेकिन अब मिल सकेगा। वहां नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी जो अब खत्म हो जाएगी। अलावा जम्मू कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता था जो अब नहीं है। संसद में पास कानून जम्मू कश्मीर में तुरंत लागू नहीं होते थे अब वे लागू हो सकेंगे। पहले जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं माना जाता था। लेकिन 370 हटने से देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी ये गतिविधियां अपराध की श्रेणी में आ गईं।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पहले जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते। अब वहां के नागरिकों को भी शीर्ष अदालत के आदेश मानने पड़ते हैं।
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पहले रक्षा, विदेश, संचार छोड़कर अन्य मामलों में जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति लेनी पड़ती थी, अब वहां केंद्र सरकार अपने कानून लागू कर सकती है।
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स्थायी निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के अधिकार मिले हुए थे। बाहरी / अन्य लोगों को यहां जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, संस्थानों में दाखिला लेने का अधिकार नहीं था।
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अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर लेती थी, तो उसके अपनी पैतृक संपत्ति पर से अधिकार छिन जाते थे। लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं था।
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लेकिन सरकार द्वारा अनुच्छेद-35ए जम्मू-कश्मीर से हटाए जाने से ये नियम बदल गए -
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अब देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर राज्य में जमीन खरीद पा रहे हैं। वे वहां सरकारी नौकरी भी कर सकते हैं।
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देश के किसी भी राज्य के विद्यार्थी वहां उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं।
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जम्मू-कश्मीर में महिला और पुरुषों के बीच अधिकारों को लेकर भेदभाव खत्म हो गया है। इतना ही नहीं, अब देश का कोई भी व्यक्ति कश्मीर में जाकर बस सकता है।