आखिर क्या है निजी स्वतंत्रता का अधिकार?/ चर्चा में क्यों?/अनुच्छेद 21/2017

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा है कि उसी अदालत के एक अन्य न्यायाधीश द्वारा हाल ही में पारित एक आदेश जिसमें स्पा [मालिश और चिकित्सा केंद्र] के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने को अनिवार्य किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के.एस पुट्टस्वामी मामला (2017)  के विपरीत प्रतीत होता है। हाल ही में एक अभिनेत्री द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें उसकी सहमति के बिना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपलोड किये गए वीडियो को हटाने का अनुरोध किया गया था।इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषणा की थी कि अनुच्छेद 21 में गारंटीकृत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महिला के निजता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिये। वहीं दूसरी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ने अपने ‘प्रकाशित करने के अधिकार’ का तर्क दिया है।

 

चौबीस अगस्त, 2017 को नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया था। इस निर्णय में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि ''निजता मानव गरिमा का संवैधानिक मूल है।'' उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत 'जीवन के अधिकार' के एक अनिवार्य घटक के रूप में नामित करने का उनका 2017 का फैसला संविधान को एक नींव के रूप में मान्यता देना था, जिस पर आने वाली पीढ़ियों का निर्माण हो। जिसमें निजी स्वतंत्रता के अधिकार को भारतीय संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों की श्रेणी दी गयी। इस फैसले में सर्वोच्छ न्यायालय की 9 सदस्यीय बेंच ने एक साथ मिलकर अपना फैसला सुनाया, जिसमें चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस आर. के. अग्रवाल, जस्टिस आर. एफ. नरीमन, जस्टिस ए. एम. सप्रे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस. के. कौल, जस्टिस अब्दुल नजीर ये जज लोग शामिल थे।

 

भारतीय संविधान देश भर के सभी नागरिकों को प्रदान किये गए सभी अधिकारों की रक्षा करता है, इस संविधान के अनुसार देश के सभी नागरिकों के लिए कई प्रकार के मौलिक अधिकार तय किये गये हैं, जो कि किसी भी नागरिक को देश में सुचारु रूप से रहने के लिए उसे सम्मान के साथ उस व्यक्ति को अपने स्तर के सभी हक़ प्रदान कराने के लिए जरुरी होते हैं, हमारे देश भारत में नागरिकों के लिए बराबरी का अधिकार, शैक्षणिक और सांस्कृतिक अधिकार आदि सर्वमान्य माने गये हैं। इसी तरह से देश के नागरिकों को एक और अधिकार प्रदान किया जाता है, जिसे निजता या निजी स्वतंत्रता के अधिकार के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति के जीवन में किसी अन्य व्यक्ति की ज़बरदस्ती के हस्तक्षेप पर रोक भी लगायी जा सकती है, इसमें किसी भी व्यक्ति की निजी, पारिवारिक, हॉनर, रेपुटेशन आदि भी सम्मिलित होती है। यहाँ पर इससे सम्बंधित सभी विशेष बातें और तात्कालिक समय में भारत सरकार पर माननीय सर्वोच्छ न्यायालय द्वारा इसके अंतर्गत उठाये गये सवालों का वर्णन किया जा रहा है।


 

आखिर क्या है निजी स्वतंत्रता का अधिकार?

 

निजी स्वतंत्रता या राईट टू प्राइवेसी का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किया गया है, जो कि भारत के नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करती है। इसके अंतर्गत भारत देश के किसी व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं -

 

भारतीय संविधान के इस प्रावधान के अंतर्गत कोई व्यक्ति अपनी निजी जानकारी किसी भी समय किसी भी अथॉरिटी या किसी व्यक्ति से प्राप्त कर सकता है।

 

यदि किसी भी प्रकार के दस्तावेज में किसी व्यक्ति की निजी जानकारियों में किसी भी प्रकार की त्रुटी हो गयी है, या कोई आवश्यक जानकारी छूट गयी है, तो वह व्यक्ति उस जानकारी को संशोधित करने के लिए आवेदन कर सकता है, और बिना किसी परेशानी के अपने दस्तावेजों को संसोधित करा सकता है।

 

बिना किसी क़ानूनी नोटिस या समन के जिसमे न्यायालय द्वारा किसी बड़े मुद्दे को हल करने के लिए अपनी कुछ निजी जानकारी साझा करने का आदेश हो सकता है, तो ऐसे आदेश के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के सामने अपनी निजी जानकारी व्यक्त न करने की स्वतंत्रता भी इस अधिकार के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होती है।

 

इस निजी स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत किसी भी नागरिक को इस बात की स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है, कि केवल वह यदि चाहे तो ही केवल उसकी निजी जानकारी किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के पास जाएगी अन्यथा नहीं जायेगी।

 

निजी स्वतंत्रता का अधिकार इस बात की भी स्वतंत्रता भी देता है, कि एक व्यक्ति यह स्वयं तय कर सकता है, कि क्या राज्य उस व्यक्ति की निजी ज़िन्दगी के विषय में जान सकता है, यदि वह व्यक्ति राज्य को इस बात की अनुमति प्रदान नहीं करता है, तो राज्य की कोई भी अथॉरिटी उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित नहीं कर सकती है, और यदि कोई व्यक्ति या संस्था उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित करती है, तो वह व्यक्ति बिना किसी परेशानी के सीधे माननीय सर्वोच्छ न्यायालय में अपने निजी स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के लिए अपील कर सकता है, और जहां से उस व्यक्ति को इन्साफ मिलेगा।

 

इस अधिकार के अनुसार कोई व्यक्ति जो जानकारी केवल अपने तक ही सीमित रखना चाहता है, वह केवल उसके ही पास रहेगी, किसी और व्यक्ति या संस्था के पास उस व्यक्ति की उस जानकारी को जानने का किसी प्रकार का कोई हक नहीं होगा।


 

मौलिक अधिकार और निजी स्वतंत्रता का अधिकार

 

निजता को मुख्य रूप से तीन जोन में बांटा जा सकता है। जिसमें पहला है, आंतरिक जोन, जिसके अंतर्गत शादी, बच्चे पैदा करना आदि मामले आते हैं। दूसरा है, प्राइवेट जोन, जहां हम अपनी निजता को किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से साझा नहीं करना चाहते, जैसे अगर बैंक में खाता खोलने के लिए हम अपना डेटा देते हैं, तो हम चाहते हैं, कि बैंक ने जिस उद्देश्य से हमारा डेटा लिया है, उसी उद्देश्य से तहत वह उसका इस्तेमाल करे, किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को वह डेटा न दे। वहीं, तीसरा होता है, पब्लिक जोन। इस दायरे में निजता का संरक्षण न्यूनतम होता है, लेकिन फिर भी एक व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक निजता बरकरार रहती है। वहीं, चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने टिप्पणी की थी, कि अगर किसी व्यक्ति से कोई ऐसा सवाल पूछा जाता है, जो उसके प्रतिष्ठा और मान - सम्मान को ठेस पहुंचाता है, तो वह निजता के मामले के अंतर्गत आता है। चीफ जस्टिस के मुताबिक, दरअसल स्वतंत्रता के अधिकार, मान - सम्मान के अधिकार और निजता के मामले को एक साथ कदम दर कदम देखना होगा। स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में मान - सम्मान का अधिकार आता है, और मान सम्मान के दायरे में निजता का मामला आता है।

 

‘भूल जाने के अधिकार के विषय में: यह एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अपनी व्यक्तिगत जानकारी को इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से हटाने का अधिकार देता है, जब संबंधित व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है। ‘गूगल स्पेन मामले’ में ‘यूरोपीय संघ न्यायालय’ (CJEU) द्वारा वर्ष 2014 में दिये गए निर्णय के बाद से ‘भूल जाने के अधिकार’ का महत्त्व काफी अधिक बढ़ गया है। भारतीय संदर्भ में ‘पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ (2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘भूल जाने का अधिकार’ निजता के अधिकार का एक हिस्सा है। मूल तौर पर ‘भूल जाने का अधिकार’ अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार से और अनुच्छेद-14 के तहत गरिमा के अधिकार से उत्पन्न हुआ है। ‘अकेले रहने के अधिकार’ के बारे में: इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति समाज से हट रहा है। यह एक प्रकार की अपेक्षा है कि समाज व्यक्ति द्वारा चुने गए विकल्पों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि वह दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाता।

 

भूल जाने के अधिकार (RTBF) से संबंधित मुद्दे: 

 

गोपनीयता बनाम सूचना: 

 

किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।उदाहरण के लिये हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी को डी-लिंक करना चाहता हो और जब लोग उससे संबंधित जानकारी एकत्र करने हेतु गूगल पर सर्च करें तो उनके लिये कुछ पत्रकारिता रिपोर्ट तक पहुंँचना मुश्किल बना सकता है। यह अनुच्छेद 21 से प्राप्त व्यक्ति के अकेले रहने के अधिकार के सीधे मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिये अनुच्छेद 19 में वर्णित मीडिया के अधिकारों के साथ विरोधाभास है।

 

निजी व्यक्तियों के खिलाफ प्रवर्तनीयता/प्रयोग: 

 

RTBF का उपयोग आमतौर पर एक निजी पार्टी (एक मीडिया या समाचार वेबसाइट) के खिलाफ किया जाएगा। इससे यह सवाल उठता है कि क्या निजी व्यक्ति के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू किया जा सकता है, जो आमतौर पर राज्य के खिलाफ लागू होता है। केवल अनुच्छेद 15(2), अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 23 एक निजी पार्टी/एकल स्वामित्व वाली किसी कंपनी को व्यक्तिगत अधिनियम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं  जिसे संविधान के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी जाती है।

 

अस्पष्ट निर्णय: 

 

हाल के वर्षों में डेटा संरक्षण कानून के बिना RTBF को संहिताबद्ध करने के लिये विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अधिकार के कुछ असंगत निर्णय दिये गए हैं। भारत में  बार-बार न्यायालयों द्वारा RTBF के आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर दिया गया है, जबकि इससे जुड़े व्यापक संवैधानिक प्रश्नों को पूरी तरह से अनदेखा किया है।

 

गोपनीयता की रक्षा के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

 

1 व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019:

 

व्यक्तिगत डेटा से संबंधित व्यक्तियों की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करना और उक्त उद्देश्यों तथा किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा से संबंधित मामलों के लिये भारतीय डेटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना करना। इसे बीएन श्रीकृष्ण समिति (2018) की सिफारिशों पर तैयार किया गया।

 

2  सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:

 

कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में यह कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने के प्रावधान हैं।

 

आगे की राह 

 

संसद और सर्वोच्च न्यायालय को RTBF के विस्तृत विश्लेषण में शामिल होना चाहिये और निजता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परस्पर विरोधी अधिकारों को संतुलित करने के लिये एक तंत्र विकसित करना चाहिये।

 

इस डिजिटल युग में डेटा एक मूल्यवान संसाधन है जिसे अनियंत्रित नहीं छोड़ा जाना चाहिये। इस संदर्भ में भारत के लिये एक मज़बूत डेटा संरक्षण व्यवस्था सुनिश्चित करने का समय आ गया है।

 

इसके लिये सरकार को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 के अधिनियमन में तेज़ी लानी चाहिये।

 

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