आखिर-कौन-थे-कश्मीरी-पंडित..जिन्हें-1990-में-कश्मीर-से-पलायन-करना-पड़ा /कश्मीरी पंडित/1990/2022

फिल्मों के लिए कश्मीर अब तक शिकारा, झील, बर्फ और वादियों वाली जन्नत ही रहा है, लेकिन इस जन्नत के सुलगने की बहुत लंबी दास्तान है. कश्मीर के घायल इतिहास के भग्नावशेष आज भी घाटी में हैं. ज्ञान की धरा कहे जाने वाले कश्मीर ने 14वीं शताब्दी से ही आक्रमणकारियों के हिन्दू संस्कृति और सभ्यता को आहत करने वाले हमले झेले.14वीं शताब्दी के बाद बहुसंख्य हिन्दुओं वाले कश्मीर का इस्लामिकरण होता गया. कश्मीर के पंडितों को बड़े उतार-चढ़ाव देखने पड़े. सदियों से कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों को 1990 में आतंकवाद की वजह से घाटी छोड़नी पड़ी या उन्हें जबरन निकाल दिया गया। कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बेरहमी से सताया गया। उनकी बेरहमी से हत्याएं की गई। उनकी स्त्रियों, बहनों और बेटियों के साथ दुष्कर्म किया गया। उनकी लड़कियों का जबरन निकाह मुस्लिम युवकों से कराया गया।

 

आज भी कश्मीरी पंडितों पर लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं अभी हाल ही में पुनः कश्मीरी पंडितों पर हमले हुए हैं l जम्मू कश्मीर में कश्मीरी पंडित राहुल भट की हत्या के बाद प्रशासन ने परिवार की मदद का फैसला किया है. एलजी ऑफिस ने ट्वीट करके कहा है कि आतंकी हमले के सभी पहलुओं की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्णय लिया गया है. आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडित महिला टीचर रजनी बाला की गोली मारकर हत्‍या कर दी। आतंकियों ने स्कूल में घुसकर पहले टीचर से उनका नाम पूछा और फिर एके-47 से सिर में गोली मार दी। आतंकवादियों ने 12 मई को बड़गाम जिले की चडूरा तहसील के कर्मचारी राहुल भट को गोली मारी थी जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा शुक्रवार को कश्मीरी पंडित समुदाय के सरकारी कर्मचारी राहुल भट के परिजनों से मिले और उन्हें इंसाफ दिलाने का भरोसा दिलाया. सिन्हा ने कहा कि आतंकवादियों और उनके समर्थकों को इस जघन्य कृत्य के लिए बहुत भारी कीमत चुकानी होगी. आज हम कश्मीरी पंडितों की समस्या के बारे में विस्तार से विचार विमर्श करेंग......

 

कौन है कश्मीरी पंडित

 

कश्मीरी पंडित (जिन्हें कश्मीरी ब्राह्मण भी कहा जाता है), कश्मीरी हिंदुओं को कश्मीरी पंडित कहा जाता है और सभी ब्राह्माण माने जाते हैं और वृहत्तर सारस्वत ब्राह्मण समुदाय का हिस्सा हैं। वे जम्मू और कश्मीर के भारत के केंद्र शासित प्रदेश में एक पहाड़ी क्षेत्र, कश्मीर घाटी के पंच गौड़ ब्राह्मण समूह से संबंधित हैं। ज्यादातर कश्मीरी पंडित मांस खाते हैं और इनके मांसाहारी व्यंजनों में नेनी [बकरे के गोश्त का] कलिया, नेनी रोगन जोश, नेनी यखयिन [यखनी], मच्छ [मछली] आदि शामिल हैं। इनके शाकाहारी व्यंजनों में चमनी कलिया, वेथ चमन, दम ओलुव (आलू दम), राज्मा गोआग्जी, चोएक वंगन (बैंगन) आदि बेहद प्रसिद्ध हैं।

 

मुस्लिम प्रभाव के क्षेत्र में प्रवेश करने से पूर्व कश्मीरी पंडित मूल रूप से कश्मीर घाटी में ही रहते थे। मुस्लिम प्रभाव बढ़ने के साथ बड़ी संख्या में लोग इस्लाम में परिवर्तित हो गए। वे कश्मीर जाति के मूल निवासी के तौर पर शेष एकमात्र कश्मीरी हिंदू समुदाय हैंl

 

कश्मीरी पंडितों का इतिहास

 

इतिहास गवाह है कि पिछले 700 साल के दौरान कश्मीरी पंडितों के कम-से-कम 7 बार बड़े पलायन हुए. पहला बड़ा पलायन हुआ 14वीं सदी के अंत में सुल्तान सिकंदर के समय. बुतशिकन कहे जाने वाले सिकंदर ने बड़े पैमाने पर नरसंहार और धर्मपरिवर्तन कराया या पलायन करने के लिए मजबूर किया।. जो इस्लाम में परिवर्तित न हुए, भारत के अन्य हिस्सों में चले गए। हालांकि संभव है कि इस समुदाय के कुछ लोग नए शासकों से बचने के साथ ही आर्थिक कारणों से भी विस्थापित हुए हों। उस वक्त कश्मीर में हिंदुओं के सिर्फ 11 परिवार रह गए थे. चौदहवीं सदी से पहले तक घाटी में मुस्लिम शासन स्थापित नहीं हुआ था। आखिरकार जब यह स्थापित हुआ तो ऐसा नहीं कि केवल बाहरी आक्रमण के परिणामस्वरूप हुआ, बल्कि स्थानीय आंतरिक समस्याओं के कारण हुआ जिसमें हिंदू लोहार राजवंश के कमजोर शासन और भ्रष्टाचार की प्रमुख भूमिका थी।

 

बुतशिकन का उत्तराधिकारी, कट्टर मुस्लिम ज़ैन-उल-अबिदीन (1423-74), हिंदुओं के प्रति सहिष्णु था। उसने उन सभी को हिंदू धर्म में पुनर्वापसी की मंजूरी दी जिनको मुस्लिम-धर्म में परिवर्तन के लिए विवश किया गया, साथ ही वह मंदिरों के जीर्णोद्धार में भी प्रवृत्त हुआ। उसने इन पंडितों की शिक्षा का सम्मान किया, जिनके लिए उसने भूमि दी और साथ ही उन लोगों को प्रोत्साहित किया, जिन्हें वापस लौटने के लिए छोड़ दिया गया था। उसने एक योग्यतातंत्र (meritocracy) को संचालित किया तथा ब्राह्मण और बौद्ध दोनों उसके निकटतम सलाहकार थे।

 

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                               तीन काश्मीरी पंडित कोई धार्मिक ग्रन्थ लिखते हुए (1890)

 

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                             तीन पंडित स्त्रियों को दर्शाती एक कलाकृति

 

कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की गाथा

 

24 अक्टूबर, 1947 की बात है, पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को पाकिस्तान ने उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। नेशनल कांफ्रेंस [नेकां], जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था व उसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे, ने भी भारत से रक्षा की अपील की। पहले अलगाववादी संगठन ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, लेकिन जब पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो उनका संहार किया जाने लगा।

 

कश्मीर से पलायन (1985-1995)

 

कश्मीरी पंडित डोगरा शासन (1846-1947) के दौरान घाटी की जनसंख्या के कृपा-प्राप्त अंग थे। उनमें से 20 प्रतिशत ने 1950 के भूमि सुधारों के परिणामस्वरूप घाटी छोड़ दी, और 1981 तक पंडित आबादी का कुल 5 प्रतिशत रह गए। भारत की आजादी ने उनसे उनका सब कुछ छीन लिया। 1989 के पहले भारतीय कश्मीर के पंडितों के पास अपनी जमीनें, घर, बगीचे, नावें आदि सभी कुछ था।

 

1990 के दशक में आतंकवाद के उभार के दौरान कट्टरपंथी इस्लामवादियों और आतंकवादियों द्वारा उत्पीड़न और धमकियों के बाद वे अधिक संख्या में जाने लगे। जनवरी 1990 की घटनाएँ विशेष रूप से शातिराना थीं। 4 जनवरी 1990 को कश्मीर के प्रत्येक हिंदू घर पर एक नोट चिपकाया गया, जिस पर लिखा था- कश्मीर छोड़ के नहीं गए तो मारे जाओगे। सबसे पहले हिंदू नेता एवं उच्च अधिकारी मारे गए। फिर हिंदुओं की स्त्रियों को उनके परिवार के सामने सामूहिक दुष्कर्म कर जिंदा जला दिया गया या निर्वस्त्र अवस्था में पेड़ से टांग दिया गया। बालकों को पीट-पीट कर मार डाला। यह मंजर देखकर कश्मीर से 3.5 लाख हिंदू पलायन कर गए। संसद, सरकार, नेता, अधिकारी, लेखक, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और पूरा देश सभी चुप थे। कश्मीरी पंडितों पर जुल्म होते रहे और समूचा राष्ट्र और हमारी राष्ट्रीय सेना देखती रही।

 

आज इस बात को 23 साल गुजर गए। भारत के विभाजन के तुरंत बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया और बेरहमी से कई दिनों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए गए, क्योंकि पंडित नेहरू ने सेना को आदेश देने में बहुत देर कर दी थी। इस देरी के कारण जहां पकिस्तान ने कश्मीर के एक तिहाई भू-भाग पर कब्जा कर लिया, वहीं उसने कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर उसे पंडित विहीन कर दिया। अब जो भाग रह गया वह अब भारत के जम्मू और कश्मीर प्रांत का एक खंड है और जो पाकिस्तान के कब्जे वाला है, उसे पाक अधिकृत कश्मीर या गुलाम कश्मीर कहा जाता है, जहां से कश्मीरी युवकों को धर्म के नाम पर भारत के खिलाफ भड़काकर कश्मीर में आतंकवाद फैलाया जाता है। 23 साल से गुलाम कश्मीर में कश्मीर और भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आतंकवाद के चलते जो कश्मीरी पंडित गुलाम कश्मीर से भागकर इधर के कश्मीर में आए थे उन्हें इधर के कश्मीर से भी भागना पड़ा और आज वे जम्मू या दिल्ली में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं।

 

1947 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी पंडित जम्मू में रहते हैं। उन्हें जम्मू में रहते हुए आज तक भारतीय नागरिकता नहीं मिली है। 1989 के पहले कभी कश्मीरी पंडित बहुसंख्यक हुआ करते थे, लेकिन आज ज्यादातर मुसलमान कश्मीरी पंडित हैं और जो नहीं है वह शरणार्थी शिविर में नारकीय जीवन काट रहे हैं। आज कश्मीर के पंडित एक ऐसा समुदाय बन गया है, जो बिना किसी गलती के ही अपने घर से बेघर हो गया है। उन्हें शायद अपनी शांतिप्रियता के कारण ही यह दिन देखने पड़ रहे हैं कि सब कुछ होते हुए भी वे और उनके बच्चे सड़क पर हैं। राजनेताओं की उपेक्षा ने भी हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है। घाटी से पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के अन्य इलाकों में विभिन्न शिविरों में रहते हैं। 23 साल से वे वहां जीने को विवश हैं। कश्मीरी पंडितों की संख्या 4 लाख से 7 लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए। एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गई।

 

कश्मीरी पंडित पर पाकिस्तान का छद्म युद्ध

 

युद्ध में भारत का सामना न कर पाने वाले पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी में छद्म युद्ध छेड़ रखा है। पाकिस्तानी समर्थित आतंकियों द्वारा कश्मीर में बड़े पैमाने पर आतंकी वारदातें की गई। आतंकियों के निशाने पर कश्मीरी पंडित रहे, जिससे उन्हें अपनी पवित्र भूमि से बेदखल होना पड़ा और अब वे अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। पिछले 23 वर्षो से जारी आतंकवाद ने घाटी के मूल निवासी कहे जाने वाले लाखों कश्मीरी पंडितों को निर्वासित जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर दिया है। 'जेहाद' और 'निजामे-मुस्तफा' के नाम पर बेघर किए गए लाखों कश्मीरी पंडितों के वापस लौटने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। ऐसे में जातिसंहार और निष्कासन के शिकार कश्मीरी पंडित घाटी में अपने लिए 'होम लैंड' की मांग कर रहे हैं।

 

कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए सरकार के खोखले दावे / सरकारों की चुप्पी

 

यह अत्याचार कई वर्षो तक चला, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों ने कभी भी उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में रूचि नहीं दिखाई। आज भी ये जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में बदहाल अवस्था में रह रहे हैं, लेकिन सरकारें इनकी समस्याओं के समाधान के नाम पर चुप्पी साधे बैठी हैं। कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए विभिन्न केंद्रीय व राच्य सरकारें लगातार प्रयास करने का दावा करते हुए कई पैकेजों की घोषणा कर चुकी हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात है।

 

विस्थापित कश्मीरी पंडितों के संगठन पनुन कश्मीर के नेता डॉ. अजय चरंगु का कहना है कि कश्मीरी पंडितों की कश्मीर की सियासत में कोई निर्णायक भूमिका नहीं रह गई है। हम लोगों को बडे़ ही सुनियोजित तरीके से हाशिये पर धकेला गया है। कश्मीर से 1989 और 90 में लगभग पांच लाख कश्मीरी पंडितों का विस्थापन हुआ था। सरकार कहती है कि एक लाख से कम थे। सभी विस्थापित जम्मू, ऊधमपुर के विस्थापित शिविरों में रह रहे हैं। कई विस्थापित दिल्ली व देश के अन्य शहरों में शरण लिए हुए हैं। गांदरबल से भी कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ, लेकिन सरकार का दावा है कि पूरे गांदरबल जिले में कोई भी विस्थापित मतदाता नहीं है। डॉ. चरंगु के अनुसार कश्मीरी पंडितों को वादी में बसाने लायक जिस माहौल की जरूरत है वह कोई तैयार नहीं कर रहा है। प्रधानमंत्री का कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए घोषित पैकेज भी सरकारी लालफीताशाही के फेर में ही फंसा हुआ है। बेरोजगारी और मुफलिसी के बीच जी रहे कश्मीरी पंडित पहले अपनी जान बचाएंगे या सियासी हक के लिए लड़ेंगे? एक अन्य कश्मीरी नेता चुन्नी लाल कौल के अनुसार सभी को कश्मीरियत का शब्द बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन हमारे लिए यह कोई मायने नहीं रखता।

 

पनुन कश्मीर

 

ये विस्थापित हिंदुओं का संगठन है। इसकी स्थापना सन् 1990 के दिसंबर माह में की गई थी। संगठन की मांग है कि कश्मीर के हिंदुओं के लिए घाटी में अलग राच्य का निर्माण किया जाए। पनुन कश्मीर का अर्थ है हमारे खुद का कश्मीर। वह कश्मीर जिसे हमने खो दिया है उसे फिर से हासिल करने के लिए संघर्ष करना। पनुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे। पनुन कश्मीरी यूथ संगठन एक अलगाववादी संगठन है, जो सात लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों के हक के लिए लड़ाई लड़ रहा है।

 

 

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