दो करोड़ बीस लाख की आबादी वाला श्रीलंका वित्तीय और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. प्रदर्शनकारी कर्फ्यू के विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं और सरकार के मंत्री सामूहिक इस्तीफ़े दे रहे हैं. श्रीलंका का वर्तमान आर्थिक संकट उसकी आर्थिक संरचना में निहित ऐतिहासिक असंतुलन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की ऋण संबंधी शर्तों और सत्तावादी शासकों की गुमराह नीतियों और भुगतान संतुलन (Balance of Payments - BoP) की गंभीर समस्या का परिणाम है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार तेज़ी से घटता जा रहा है और देश के लिये आवश्यक उपभोग की वस्तुओं का आयात करना कठिन होता जा रहा है। साल 1948 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से इस वक़्त सबसे ख़राब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहे इस देश में महंगाई के कारण बुनियादी चीज़ों की क़ीमतें आसमान छू रही हैं. हफ्तों तक गुस्सा उबलने के बाद आख़िरकार फट पड़ा, विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए और सरकार की नींव हिला दी.
श्रीलंका में प्रदर्शनों में क्या हो रहा है?
प्रदर्शनकारियों ने मार्च के अंत में राजधानी कोलंबो की सड़कों पर उतरकर सरकर से कार्रवाई और जवाबदेही की मांग की. जनता की निराशा और गुस्सा 31 मार्च को उस समय फूट पड़ा, जब प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के निजी आवास के बाहर ईंटें फेंकी और आग लगा दी. पुलिस ने विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए आंसू गैस और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया और उसके बाद 36 घंटे का कर्फ्यू लगा दिया. राष्ट्रपति राजपक्षे ने 1 अप्रैल को राष्ट्रव्यापी आपातकाल की घोषणा की, जिससे अधिकारियों को बिना वारंट के लोगों को हिरासत में लेने और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करने का अधिकार मिल गया. लेकिन कर्फ्यू की परवाह किए बिना प्रदर्शन अगले दिन और बढ़ गए, जिसके बाद पुलिस ने सैंकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया. तब से विरोध प्रदर्शन जारी हैं, हालांकि वे काफ़ी हद तक शांतिपूर्ण रहे हैं. मंगलवार की रात, छात्र प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने राजपक्षे के आवास को फिर से घेर लिया था और उनके इस्तीफ़े की मांग की. आपातकाल के अध्यादेश को 5 अप्रैल को रद्द कर दिया गया था. श्रीलंका में प्रदर्शनकारियों और सरकार के बीच टकराव बढ़ा, कोलंबो की सड़कों पर पुलिस और सेना का पहरा
श्रीलंका में आर्थिक संकट की वजह क्या है?
जानकारों का कहना है कि श्रीलंका में संकट कई सालों से पनप रहा था, जिसकी एक वजह सरकार का ग़लत प्रबंधन भी माना जाता है. वर्ष 2009 में श्रीलंका जब 26 वर्षों से जारी गृहयुद्ध से उभरा तो युद्ध के बाद की उसकी जीडीपी वृद्धि वर्ष 2012 तक प्रति वर्ष 8-9% के उपयुक्त उच्च स्तर पर बनी रही थी।
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लेकिन वैश्विक कमोडिटी मूल्यों में गिरावट, निर्यात की मंदी और आयात में वृद्धि के साथ वर्ष 2013 के बाद उसकी औसत जीडीपी विकास दर घटकर लगभग आधी रह गई।
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गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था और वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त कर दिया था, जिसके कारण देश को वर्ष 2009 में IMF से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लेने के लिये विवश होना पड़ा था।
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विशेषज्ञों के मुताबिक़, पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज़ के रूप में ली. वर्ष 2016 में श्रीलंका एक बार फिर 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण के लिये IMF के पास पहुँचा, लेकिन IMF की शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक स्वास्थ्य को और बदतर कर दिया।
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बढ़ते कर्ज़ के अलावा कई दूसरी चीज़ों ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर चोट की. जिनमें भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मानव निर्मित तबाही तक शामिल है.
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स्थितियां 2018 में बदतर हो गई, जब राष्ट्रपति के प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने के बाद एक संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. इसके एक साल बाद 2019 के ईस्टर धमाकों में चर्चों और बड़े होटलों में सैंकड़ों लोग मारे गए. और 2020 के बाद से कोविड-19 महामारी ने प्रकोप दिखाया.

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अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने करों में कटौती की एक नाकाम कोशिश की. लेकिन ये कदम उल्टा पड़ गया और सरकार के राजस्व पर बुरा असर पड़ा. इसके चलते रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका को लगभग डिफ़ॉल्ट स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया, जिसका मतलब कि देश ने विदेशी बाज़ारों तक पहुंच खो दी.
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सरकारी कर्ज़ का भुगतान करने के लिए फिर श्रीलंका को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का रुख करना पड़ा, जिसके चलते इस साल भंडार घटकर 2.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2018 में 6.9 बिलियन डॉलर था. इससे ईंधन और अन्य ज़रूरी चीज़ों के आयात पर असर पड़ा और कीमतें बढ़ गईं.
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इन सबसे ऊपर, सरकार ने मार्च में श्रीलंकाई रुपया फ्लोट किया यानी इसकी क़ीमत विदेशी मुद्रा बाज़ारों की मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित की जाने लगी.
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ये कदम मुद्रा का अवमूल्यन करने के मक़सद से उठाया गया, ताकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज़ मिल जाए. हालांकि अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरावट ने आम श्रीलंकाई लोगों के लिए हालात और ख़राब कर दिए.
श्रीलंका का उर्वरक प्रतिबंध: इसमें रासायनिक उर्वरकों पर सरकार का प्रतिबंध शामिल है, जिसने किसानों की फसल को बर्बाद कर दिया.वर्ष 2021 में सरकार ने सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया और श्रीलंका को रातों-रात 100% जैविक खेती वाला देश बनाने की घोषणा कर दी गई।
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रातों-रात जैविक खादों की ओर आगे बढ़ जाने के इस प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
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नतीजतन, श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा का लगातार मूल्यह्रास और तेज़ी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर नियंत्रण के लिये देश में एक आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी।
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विदेशी मुद्रा की कमी के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर रातों-रात आरोपित विनाशकारी प्रतिबंध ने खाद्य कीमतों को और बढ़ा दिया।
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मुद्रास्फीति का स्तर वर्तमान में 15% से अधिक है और इसके औसतन 17.5% रहने का अनुमान है, जिससे लाखों गरीब श्रीलंकाई गंभीर संकट की स्थिति में
श्रीलंका में आम लोगों के लिए कैसे हालात हैं?
श्रीलंका में आम लोगों के लिए स्थितियां बहुत बुरी हो गई हैं. लोगों को बुनियादी सामान के लिए घंटों तक लाइन में लगना पड़ रहा है और वो भी उनको एक सीमित मात्रा में मिल रहा है.

हाल के हफ़्तों में दुकानों को बंद करना पड़ा है, क्योंकि फ्रिज, एयर कंडीशनर या पंखे नहीं चला सकते हैं. लोगों को गैस स्टेशनों पर टैंक भरवाने के लिए घंटों गर्मी में खड़ा होना पड़ रहा है, इन लोगों को संभालने के लिए गैस स्टेशनों पर सैनिकों को तैनात किया गया है. रिपोर्ट्स हैं कि इंतज़ार करते-करते कुछ लोगों की जान भी चली गई.

स्थानीय लोगों का कहना है कि ब्रेड के दाम दोगुने हो गए हैं, जबकि ऑटो रिक्शा और टैक्सी चालकों का कहना है कि सीमित मात्रा में मिल रहा ईंधन बहुत कम है.
कुछ लोगों के लिए हालात और बुरे हैं. उन्हें अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम भी करना है और सामान लेने के लिए लाइनों में भी लगना पड़ रहा है.

मध्यम वर्ग के जिन लोगों के पास अपनी सेविंग्स हैं वो भी परेशान हैं, उन्हें डर है कि उनकी दवाइयां या गैस ख़त्म हो सकती है. लगातार हो रहे पावर कट ने कोलंबो को अंधेरे में धकेल दिया है. 10-10 घंटे तक बिजली गुल हो रही है.
श्रीलंका में ड्राइवर अब ईंधन एक तय मात्रा में ही ख़रीद सकते हैं. सरकारी कंपनी सीलोन पेट्रोलियम कॉपरेशन का कहना है कि ये व्यवस्था अगले दो हफ़्ते के लिए लागू रहेगी.
दो पहिया वाहनों को एक हज़ार रुपये से ज़्यादा और तीन पहिया और कार, वैन, जीप और दूसरी गाड़ियों को 1500 रुपये से ज़्यादा ईंधन नहीं दिया जा सकता. हालांकि बसों और दूसरे कमर्शियल डिज़ल वाहनों पर ये सीमा लागू नहीं होगी.

वहां ईंधन डिब्बों, बाल्टियों और प्लास्टिक के टैंक में नहीं मिल सकेगा. लोगों में डर है कि इससे कालाबाज़ारी बढ़ेगी. इस बीच श्रीलंका के सेंट्रल बैंक ने लिट्रो गैस कंपनी को गैस ख़रीदने के लिए 10 मीलियन डॉलर दिए हैं. उम्मीद की जा रही है कि इससे भविष्य में देश को 8500 मैट्रिक गैस मिल सकेगी.
इस बीच देश के सेंट्रल बैंक के गवर्नर ने कहा है कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाने की ज़रूरत है ताक़ि खाना, ईंधन और दवाओं जैसी रोज़ाना की ज़रूरतों के आयात को जारी रखा जा सके. उन्होंने विदेशों में रहने वाले श्रीलंका के लोगों से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में दान देने की अपील की है.
इस बीच श्रीलंका कर्ज़ चुकाने में मदद के लिए पड़ोसी देशों का रुख कर रहा है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी बातचीत जारी है.
वहीं नुक़सान में चल रही श्रीलंकन एयरलाइंस ने अपने 21 विमानों को लीज़ पर देने की योजना बनाई है. हालांकि कई नेताओं ने विमान लीज़ पर देने के श्रीलंकन एयरलाइन के फ़ैसला की कड़ी आलोचना की है.
सांसद डॉ. हर्षा डी सिल्वा ने ट्वीट किया, 'ये कोई प्राथमिकता नहीं है. लोगों को ईंधन, गैस, कैंसर की दवाओं, मिल्क पाउडर की ज़रूरत है, ना कि विमानों की. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अब जागिए.'
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श्रीलंका की कैबिनेट में कितने इस्तीफ़े हुए?
शीर्ष मंत्रियों के सामूहिक इस्तीफ़े के बाद 3 अप्रैल को सरकार का पूरा मंत्रिमंडल भंग हो गया था. उस सप्ताह के अंत में क़रीब 26 कैबिनेट मंत्रियों ने पद छोड़ दिया था, जिसमें राष्ट्रपति के भतीजे भी शामिल थे, जिन्होंने सोशल मीडिया पर ब्लैकआउट की आलोचना की थी. केंद्रीय बैंक के गवर्नर सहित अन्य प्रमुख हस्तियों ने भी इस्तीफ़ा दे दिया था.
सरकार को लगे इस बड़े झटके के बाद सोमवार को राष्ट्रपति ने एक फेरबदल करने का प्रयास किया, उन्हें उम्मीद थी कि ये कदम विपक्ष को शांत कर देगा. एक वित्त मंत्री समेत चार मंत्रियों को अस्थायी रूप से सरकार चलाने के लिए नियुक्त किया गया, जबकि "कैबिनेट की पूर्ण नियुक्त होने तक" देश को चलाने के लिए कई अन्य नियुक्तियां भी की गईं. लेकिन एक दिन बाद ही, अस्थायी वित्त मंत्री ने पद छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि उन्हें एहसास हुआ कि ज़्यादा ठोस कदम उठाए जाने की ज़रूरत है.
ये फेरबदल पार्टी को आगे होने वाले नुक़सान से नहीं बचा सका. कई सहयोगी दलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद सत्तारूढ़ श्रीलंका पीपुल्स फ्रंट गठबंधन को मंगलवार तक 41 सीटों का नुक़सान हुआ. गठबंधन के पास सिर्फ 104 सीटें बची थीं, जिसके बाद उसने बहुमत खो दिया.

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श्रीलंका की सरकार क्या कह रही है?
राष्ट्रपति राजपक्षे ने 4 अप्रैल को एक बयान जारी किया और सभी दलों से "जनता और आने वाली पीढ़ियों के लिए मिलकर काम करने" की अपील की.
उन्होंने कहा, "मौजूदा संकट कई आर्थिक और वैश्विक कारणों का नतीजा है और लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर रहकर इसका समाधान खोजा जाना चाहिए."
इसके अलगे दिन कैबिनेट फेरबदल की घोषणा करते हुए राष्ट्रपति कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि राजपक्षे ने "देश के सामने खड़ी आर्थिक चुनौती से उबरने के लिए सभी लोगों का समर्थन मांगा है."
6 अप्रैल को चीफ़ गवर्नमेंट व्हिप जॉनसन फर्नांडो ने संसद सत्र के दौरान कहा कि राजपक्षे "किसी भी परिस्थिति में" इस्तीफा नहीं देंगे. फर्नांडो सत्तारूढ़ गठबंधन के सदस्य हैं और उन्हें राष्ट्रपति के क़रीबी सहयोगी के तौर पर देखा जाता है.
इससे पहले, राजपक्षे ने पिछले महीने राष्ट्र के नाम एक संबोधन में कहा था कि वो इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा था कि "ये संकट मैंने खड़ा नहीं किया है."

1 अप्रैल को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, जो राष्ट्रपति के बड़े भाई और खुद एक पूर्व राष्ट्रपति हैं, उन्होंने समाचार चैनल सीएनएन को बताया कि ये कहना ग़लत था कि सरकार ने अर्थव्यवस्था का प्रबंधन ग़लत तरीक़े से किया. उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोविड-19 एक वजह थी.

श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की सहायता
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जहाँ आशंका जताई जा रही है कि गंभीर डॉलर संकट से ‘सॉवरेन डिफ़ॉल्ट’ और आयात-निर्भर देश में आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी की स्थिति बन सकती है, इससे जूझ रहे पड़ोसी द्वीपीय-राष्ट्र को जनवरी 2022 से भारत उल्लेखनीय आर्थिक सहायता प्रदान कर रहा है।
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वर्ष 2022 के आरंभ से भारत द्वारा 1.4 बिलियन डॉलर से अधिक का राहत प्रदान किया गया है जिसमें 400 डॉलर का ‘करेंसी स्वैप’, 500 डॉलर का ऋण स्थगन (loan deferment) और ईंधन आयात के लिये 500 डॉलर का ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ शामिल है।
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इसके साथ ही अभी हाल ही में भारत ने अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका की मदद के लिये उसे 1 बिलियन डॉलर अल्पकालिक रियायती ऋण भी प्रदान किया है।
श्रीलंका की मदद करना भारत के हित में
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चीन से श्रीलंका का कोई भी मोहभंग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ से श्रीलंकाई द्वीपसमूह को दूर रखने के भारत के प्रयास को सुगमता मिलेगी। इस क्षेत्र में चीनी उपस्थिति और प्रभाव को नियंत्रित करना भारत के हित में है।
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श्रीलंकाई लोगों की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत जहाँ तक न्यून-लागत सहायता प्रदान कर सकता हो, उसे प्रदान करना चाहिये, लेकिन साथ ही यह ध्यान में रखते हुए सावधानी से ऐसा किया जाना चाहिये कि उसकी सहायता का नज़र आना भी मायने रखता है।
आगे की राह श्रीलंका में अब आगे क्या होगा?
श्रीलंका अब आईएमएफ से वित्तीय सहायता मांग रहा है और मदद करने में सक्षम क्षेत्रीय शक्तियों का रुख कर रहा है.
बीते महीने एक संबोधन में राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा था कि उन्होंने आईएमएफ से पैसा लेने के फायदे-नुक़सान के बारे में सोचा था और फिर संस्था से बेलआउट लेने का फ़ैसला किया. जबकि उनकी सरकार ऐसा करने की पक्ष में नहीं थी.
श्रीलंका ने चीन और भारत से भी मदद मांगी है. भारत पहले ही मार्च में $1 बिलियन की क्रेडिट लाइन जारी कर चुका है - लेकिन कुछ विश्लेषकों ने चेतावनी दी कि ये सहायता संकट को हल करने के बजाए इसे खींच सकती है.
आगे क्या होगा, इसे लेकर अभी भी बहुत अनिश्चितता है. देश के केंद्रीय बैंक के अनुसार, नेशनल कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन सितंबर में 6.2% से फरवरी में 17.5% यानी लगभग तीन गुना हो गई है. और श्रीलंका को इस साल के बाक़ी वक़्त में लगभग 4 बिलियन डॉलर का कर्ज़ चुकाना है, जिसमें 1 बिलियन डॉलर का अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड भी शामिल है जो जुलाई में मैच्योर होता है.
श्रीलंका में बिगड़ते हालातों ने अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की चिंता बढ़ा दी है. 5 अप्रैल को एक प्रेस ब्रीफिंग में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के उच्चायुक्त के प्रवक्ता लिज़ थ्रोसेल ने श्रीलंका की आधिकारिक प्रतिक्रिया पर चिंता व्यक्त की.
उन्होंने कहा कि कर्फ्यू, सोशल मीडिया ब्लैकआउट और विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए पुलिस की कार्रवाई की वजह से लोग अपने हालात के बारे में नहीं बता पाएंगे.
उन्होंने कहा कि "असंतोष को दबाने या शांतिपूर्ण विरोध में बाधा डालने के लिए इन तरीक़ों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए."
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श्रीलंका के लिये उपाय: जैसे ही कुछ आवश्यक वस्तुओं की कमी समाप्त होती है, जैसा सिंहल-तमिल नव वर्ष (अप्रैल के मध्य में) की शुरुआत से पहले होने की उम्मीद है, सरकार को देश के आर्थिक सुधार के लिये उपाय करने चाहिये।
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मौजूदा संकट से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों के साथ ही युद्ध प्रभावित उत्तरी और पूर्वी प्रांतों के आर्थिक विकास के लिये एक रोडमैप बनाने हेतु सरकार को तमिल राजनीतिक नेतृत्व के साथ हाथ मिलाना चाहिये।
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घरेलू कर राजस्व को बढ़ाना और उधारी (विशेष रूप से बाहरी स्रोतों से सॉवरेन उधारी) को सीमित करने के लिये सरकारी व्यय को कम करने जैसे उपयुक्त कदम उठाने होंगे।
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भारत की सहायता: भारत के लिये यह अविवेकपूर्ण होगा कि वह चीन को श्रीलंकाई क्षेत्र में अपना अधिग्रहण बढ़ाने का अवसर दे। भारत को श्रीलंका के लिये वित्तीय मदद, नीतिगत सलाह और भारतीय उद्यमियों की ओर से वहाँ निवेश की पेशकश करनी चाहिये।
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भारतीय व्यवसायों को आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करना चाहिये जो चाय के निर्यात से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं तक वस्तुओं एवं सेवाओं के विषय में भारतीय और श्रीलंकाई अर्थव्यवस्थाओं को आपस में सहयुक्त करे।
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किसी अन्य देश के बजाय भारत को आगे बढ़ते हुए एक स्थिर व मैत्रीपूर्ण पड़ोस का लाभ प्राप्त कर सकने के लिये श्रीलंका की मदद करनी चाहिये ताकि वह अपनी क्षमताओं को उपयोग कर सके।
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अवैध शरण की रोकथाम: श्रीलंका से अवैध तरीकों से 16 व्यक्तियों के आगमन के साथ तमिलनाडु राज्य ने पहले ही इस संकट के प्रभाव को महसूस करना शुरू कर दिया है।
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वर्ष 1983 के तमिल-विरोधी नरसंहार के बाद तमिलनाडु लगभग तीन लाख शरणार्थियों का शरण-स्थल बना था।
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भारत और श्रीलंका दोनों के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वर्तमान संकट का उपयोग तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिये या दोनों देशों में भावनाओं को भड़काने के लिये नहीं किया जा सके।
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‘आपदा में अवसर’: तनावपूर्ण संबंध न तो श्रीलंका के हित में हैं और न ही भारत के। एक अधिक बड़े देश के रूप में इसका उत्तरदायित्व भारत पर है; उसे अत्यंत धैर्य रखने की और श्रीलंका को और भी अधिक नियमितता व निकटता से संलग्न करने की आवश्यकता है।
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कोलंबो के घरेलू मामलों में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से दूर रहते हुए हमारी जन-केंद्रित विकासात्मक गतिविधियों को भी आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
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नई दिल्ली और कोलंबो को पाक खाड़ी (Palk Bay) मत्स्य-क्षेत्र विवाद, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक लंबे समय से अड़चन बना रहा है, का समाधान निकालने के लिये इस आपदा को एक अवसर के रूप में उपयोग करना चाहिये।
प्रश्न: ‘‘श्रीलंका में चल रहे आर्थिक संकट के बीच, भारत को श्रीलंका के लिये वित्तीय मदद, नीतिगत सलाह और भारतीय उद्यमियों की ओर से वहाँ निवेश की पेशकश करनी चाहिये। श्रीलंका में चीन की उपस्थिति पर नियंत्रण भारत के अपने हित में है।’’ टिप्पणी कीजिये।