महामारी से अब तक दुनिया पूरी तरह उबर भी नहीं सकी है कि एक नए वायरस ने दस्तक दे दी है. मंकीपॉक्स, एक ऐसी बीमारी जो दशकों से अफ्रीकी लोगों में आम है लेकिन अब वो दुनिया के अन्य देशों में भी फैल रही है. खासकर अमेरिका, कनाडा और कई यूरोपीय देशों में इसके मामले सामने आ रहे हैं. 11 देशों में अब तक 80 मामले पाए जा चुके हैं. हालांकि इस बीमारी का प्रकोप अभी बहुत व्यापक तो नहीं है लेकिन कुछ देशों में आए नए केस ने लोगो में चिंता ज़रूर पैदा कर दिया है.स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि एक बार फिर वायरस के फैलने का कारण क्या है इसे लेकर अधिक जानकारी नहीं है, उनका कहना है कि फिलहाल आम जनता के लिए घबराने की कोई बात नहीं है. ब्रिटेन के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यालय में राष्ट्रीय संक्रमण सेवा के उप निदेशक निक फिन ने कहा, "इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि मंकीपॉक्स लोगों के बीच आसानी से नहीं फैलता है और आम जनता के लिए जोखिम बहुत कम है."
अमरीका, ब्रिटेन और यूरोप के कई देशों समेत कम के कम 11 देशों में मंकीपॉक्स (monkeypox virus) के 80 मामले सामने आने के बाद अब विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत भारत सरकार (india monkeypox alert) भी इसको लेकर सतर्क हो गई। पिछले एक सप्ताह में जिस तरह से ब्रिटेन, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, अमरीका, स्वीडन और कनाडा में ज्यादातर ऐसे युवा पुरुषों में जिन्होंने पहले अफ्रीका की यात्रा नहीं की थी, में मंकीपॉक्स के मामले सामने आए हैं, उससे खुद अफ्रीकी वैज्ञानिक भी हैरान हैं। अभी तक यह बीमारी केंद्रीय और पश्चिमी अफ्रीकी देशों तक ही सीमित रही है। अब अफ्रीका से बाहर मंकीपॉक्स के मामले मिलने से वैज्ञानिक आशंकित हैं कि कहीं ये कुछ नया तो नहीं हो रहा। हालात की गंभीरता समझते हुए अब इस मसले पर मंथन करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO call for emergency meeting on monkeypox) ने यूरोप के समयानुसार शुक्रवार 20 मई (May ) और भारत के समयानुसार 21 मई को एक आपात बैठक बुलाई थी और इस बीमारी के संक्रमण फैलने और बीमारी की जानकारी देने वाले ट्वीट भी किए हैं। WHO की बैठक में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। बैठक में ये सामने आया है कि यूरोप में अब तक 100 से ज्यादा मंकीपॉक्स संक्रमण के मामले आ चुके हैं (WHO meet, Europe reported over 100 confirmed cases of Monkeypox)। इसमें 20 मई यानी शुक्रवार को ही सिर्फ स्पैन में ही 24 मंकीपॉक्स के मामले दर्ज किए गए। ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री Sajid Javid ने ट्वीट कर (Tweet of British Health Minister over MonkeyPox) बताया है कि उनके देश में अब तक मंकीपॉक्स संक्रमण के 11 मामले सामने आ चुके हैं और वे इसके लिए वैक्सीन भी ऑर्डर कर रहे हैं (ताजा अपडेट में ये संख्या 20 हो चुकी है )। बीबीसी के अनुसार इसके लिए फिलहाल स्मॉलपॉक्स के वैक्सीन ऑर्डर किए गए हैं।
इससे पहले भी कई बार फैल चुकी है बीमारी:
मंकीपॉक्स का इंसानों में पहला मामला कॉन्गो गणराज्य में 1970 में दर्ज किया गया था, और इसके बाद दशकों से मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के कई देशों में संक्रमण समय -समय पर फैलता रहा है. हालांकि अफ्रीका के बाहर मंकीपॉक्स के मामले दुर्लभ हैं लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका, ब्रिटेन , इसराइल और सिंगापुर में इनकी केस सामने आए हैं. ब्रिटेन में वर्तमान समय में इस बिमारी के मामले सामने आए हैं लेकिन इससे पहले भी ब्रिटेन में इसके मामले साल 2018, 2019 और 2021 में रिपोर्ट किए गए थे. अफ्रीका के बाहर अब से पहलरे जितने भी मामले सामने आए वे बेहद कम थे. साल 203 में अमेरिका में इसके 47 ममाले सामने आए थे. पिछले अनुभवों ने स्वास्थ्य अधिकारियों को इस वायरस की जानकरी तो दी ही है साथ ही इसे रोका कैसे जाए ये भी सिखाया है. हालांकि कई देशों की स्वास्थ्य एजेंसियों ने कहा है कि वो इस वायरस के सामने आ रहे मामलों पर करीब से नज़र बना हुए हैं. ठीक ठीक डेटा मिलने तब नहीं कहा जा सकता कि इस वायरस का प्रकोप पिछली बार जितना हल्का रहेगा या नहीं. इससे पहले कभी अफ़्रीका के बाहर अन्य देशों में एख के बाद एक इतने मामले मंकीपॉक्स के नहीं देखे गए. इस बात का भी कोई ठीक कनेक्शन नहीं है कि अफ्रीका से किसी संक्रमित व्यक्ति ने प्रभावित देशों में यात्रा की हो.
आखिर क्या है मंकीपॉक्स ?
जैसा कि नाम से जाहिर है, मंकीपॉक्स एक दुर्लभ वायरल संक्रमण है। यह पहली बार 1958 में शोध के लिए रखे गए बंदरों में पाया गया था। मंकीपॉक्स से पहला मानव संक्रमण का पहला मामला 1970 में दर्ज किया गया था। यह रोग मुख्य रूप से मध्य और पश्चिम अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन क्षेत्रों में होता है और यदा-कदा अन्य क्षेत्रों में भी इसके मामले रिपोर्ट किए गए हैं।
बीमारी के लक्षण (Symptom of MonkeyPox):
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मंकीपॉक्स के लक्षणों में आमतौर पर बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, कम ऊर्जा, सूजी हुई लिम्फ नोड्स (गांठ) और त्वचा पर लाल चकत्ते या घाव शामिल हैं। इसमें उभरने वाले दाने आमतौर पर बुखार शुरू होने के एक से तीन दिनों के भीतर शुरू हो जाते हैं। घाव सपाट या थोड़ा ऊपर उठा हुआ हो सकता है, इसमें स्पष्ट या पीले तरल से भरा हो सकता है, और फिर पपड़ी सूख और गिर सकता है। एक व्यक्ति पर घावों की संख्या कुछ से लेकर कई हजार तक हो सकती है। दाने चेहरे, हाथों की हथेलियों और पैरों के तलवों पर केंद्रित होते हैं। वे मुंह, जननांगों और आंखों पर भी पाए जा सकते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर दो से चार सप्ताह के बीच रहते हैं और उपचार के बिना अपने आप चले जाते हैं। यदि आपको लगता है कि आपके पास ऐसे लक्षण हैं जो मंकीपॉक्स हो सकते हैं, तो अपने स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता से सलाह लें। उन्हें बताएं कि क्या आपने किसी ऐसे व्यक्ति के साथ निकट संपर्क किया है जिसे मंकीपॉक्स का संदेह या पुष्टि हुई है।

इसकी वैक्सीन और उपचार उपलब्ध है:
दशकों से एक समुदाय को प्रभावित करने वाला ये वायरस जाना-पहचाना हुआ है और इसके टीके और उपचार उपलब्ध हैं. चूंकि मंकीपॉक्स वायरस चेचक का कारण बनने वाले वायरस से काफ़ी मिलता-जुलता है इसलिए चेचक के टीके को भी दोनों रोगों के लिए प्रभावी माना गया है. यूनाइटेड स्टेट्स सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने अपनी वेबसाइट पर बताया कि मंकीपॉक्स के संक्रमण के लिए वर्तमान में कोई विशेष उपचार उपलब्ध नहीं है, लेकिन दवा के साथ इसके फैलने को नियंत्रित किया जा सकता है. बाजार में पहले से दवाएं मौजूद हैं जो पहले से मंकीपॉक्स में इस्तेमाल के लिए अप्रूव हैं और बीमारी के खिलाफ प्रभावी रही है. जैसे-सिडोफोविर, एसटी -246 और वैक्सीनिया इम्युनोग्लोबुलिन का इस्तेमाल मंकीपॉक्स के संक्रमण में किया जाता है.
मंकीपॉक्स की रोकथाम और उपचार के लिए एक बहु-राष्ट्रीय स्तर पर मंजूरी पा चुकी वैक्सीन JYNNEOSTM भी उपलब्ध है जिसे इम्वाम्यून या इम्वेनेक्स के नाम से भी जाना जाता है. इस वैक्सीन को डेनिश दवा कंपनी बवेरियन नॉर्डिक बनाती है. अफ्रीका में इसके इस्तेमाल के पिछले आंकड़े बताते हैं कि यह मंकीपॉक्स को रोकने में 85% प्रभावी है.

इसके अलावा एक चेचक का टीका है जिसका नाम ACAM2000 है. स्वास्थ्य अधिकारी मानते है कि ये वैक्सीन मंकीपॉक्स के खिलाफ भी प्रभावी होती है. इस वैक्सीन का इस्तेमाल साल 2003 में अमेरिका में इस वायरस के फैलने के समय किया गया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुका है कि चेचक के टीके लगवाने वाले लोग काफ़ी हद तक मंकीपॉक्स वायरस से भी सुरक्षित रहते हैं. हालांकि कई देशों में इस टीकाकरण को लगभग 40 साल पहले ही बंद कर दिया गया था क्योंकि इन देशों से चेचक की बीमारी ही खत्म हो चुकी थी. अधिकांश देशों में टीके वर्तमान में केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए हैं, जिनपर इस बीमारी का जोखिम में बड़ा माना जा रहा है. ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी बताती है कि मंकीपॉक्स टीके का उपयोग संक्रमित होने से पहले और बाद में दोनों में स्थिति में किया जा सकता है.

संक्रमण बहुत ज़्यादा नहीं:
ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी का कहना है कि अन्य संक्रामक रोगों के उलट मंकीपॉक्स लोगों के बीच आसानी से नहीं फैलता है. पिछली बार जब इस बीमारी का संक्रमण फैला था तो एक संक्रमित व्यक्ति से वायरस का संक्रमण औसतन जीरो से एक व्यक्ति के बीच था. इसलिए संक्रमण से फैलने का स्तर इस वायरस में बहुत कम रहा है. अमेरिकी आर्मी मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर इंफेक्शियस डिजीज के जे हूपर ने बीमारी पर एक रिपोर्ट को लेकर बात करने हुए एनपीआर को बताया, "ज्यादातर मामलों में, एक बीमार व्यक्ति किसी को भी संक्रमित नहीं करता. " साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के डॉ. हेड बताते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि संक्रमित व्यक्ति से संक्रमण फैलने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क ज़रूरी है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सामान्य आबादी में मंकीपॉक्स के मामले में मृत्यु दर 0 से 11% तक है और छोटे बच्चों में यह अधिक है. मंकीपॉक्स तब फैल सकता है जब कोई व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति या संक्रमित जानवर के निकट संपर्क में आता है.

क्यों चिंतित हैं अफ्रीकी वैज्ञानिक:
मंकीपॉक्स अब तक मुख्य रूप से अफ्रीकी के ही कुछ देशों में केंद्रित रहा है। लेकिन अब जिस तरह से ये बीमारी दुनिया भर में फैल रही है उससे अफ्रीका के scientists हैरान हैं। जाने-माने वायरोलॉजिस्ट और नाइजीरियाई विज्ञान अकादमी के पूर्व चेयरमैन ओयेवाले तोमोरी, जो खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन के कई सलाहकार बोर्ड में हैं, ने वायरस के इस प्रसार पर चिंता और हैरानी जाहिर की है। मीडिया से बात करते हुए तोमोरी ने कहा है कि - मैं इससे स्तब्ध हूं। हर दिन मैं जागता हूं और रोज देखता हूँ कि इससे और अधिक देशों के लोग संक्रमित हो रहे हैं। तोमोरी का कहना है कि - यह उस तरह का प्रसार नहीं है जैसा हमने पश्चिम अफ्रीका में देखा है, इसलिए यूरोप या अमरीका में कुछ नया हो सकता है। हालांकि यूरोप में अभी तक इस मौजूदा प्रकोप से किसी की मौत नहीं हुई है। तोमोरी के अनुसार यह बीमारी 10 लोगों में से एक के लिए घातक है, लेकिन चेचक के टीके सुरक्षात्मक हैं। पर चिंता इस बात की है, कि अगर ये कुछ नया हुआ तो?
अलर्ट मोड पर भारत सरकार:
पहले ही कोरोना और महंगाई से जूझ रही भारत सरकार भी अब इसको लेकर कोई जोखिम लेने के मूड में नहीं दिख रही है। बदलते हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने एनसीडीसी और आईसीएमआर को विदेश में मंकीपॉक्स की स्थिति पर कड़ी नजर रखने और प्रभावित देशों से आने वाले संदिग्ध बीमार यात्रियों के नमूने को आगे की जांच के लिए पुणे स्थित एनआईवी भेजने का निर्देश दिया है। समाचार एजेंसी एएनआई ने अपने ट्विटर हैंडल से सूत्रों के हवाले से शुक्रवार को यह जानकारी दी है। खबर में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सिर्फ ऐसे सैम्पल ही पुणे स्थित एनआईवी को भेजे जाएं, जहां व्यक्ति में कुछ विशिष्ट लक्षण नजर आते हैं, सभी बीमार यात्रियों के सैम्पल नहीं भेजने हैं।
भारत में अब तक नहीं आया है कोई मामला
हालांकि भारत में अभी तक इससे संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन ब्रिटेन, इटली, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन और अमेरिका में लोग इससे संक्रमित पाए गए हैं। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस इस बीमारी के संभावित संक्रमणों की जांच कर रहे हैं। WHO के अनुसार इसमें मृत्यु दर 10 प्रतिशत हो सकती है। कुल मिलाकर, मंकीपॉक्स के करीब 130 से अधिक संदिग्ध और पुष्ट मामले सामने आए हैं।