#G-7 क्या है? #रूस - युक्रेन संकट के दौरान भारत और G7 विकास शील देशों की आवाज बनकर उभरे?

 

चर्चा में क्यों?

जर्मनी के बवेरियन आल्प्स में 26 जून 2022 को ग्रुप ऑफ सेवन (G7) के नेताओं की 48वें G7 शिखर सम्मेलन अर्थात तीन दिवसीय सम्मलेन में भारतीय प्रधानमंत्री हिस्सा लेने के लिये अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गये है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 शिखर सम्मेलन के दो सत्रों में भाग लिया l जिसमें पर्यावरण, जलवायु, ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, लैंगिक समानता, स्वास्थ्य और लोकतंत्र जैसे मुद्दों पर चर्चा की.  विश्व के 7 सबसे विकसित राष्ट्र (फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंग्डम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा) विश्व की समस्याओं पर सभी का ध्यान दिलाने के लिए हर साल किसी देश में विचार विमर्श के लिए इकट्ठे होते हैं. आइए जानते हैं कि जी7 शिखर सम्मेलन 2022 है क्या? G-7 शिखर सम्मेलन 2022 के आमंत्रित अतिथि कौन हैं और जी-7 शिखर सम्मेलन 2022 में कौन-कौन से देश लेंगे भाग?

 

 

ग्रुप ऑफ सेवन (G-7)

 

 

G–7 के सदस्य देश (Members of G-7) G-7 या द ग्रुप ऑफ़ सेवन (G7) एक अंतरराष्ट्रीय अंतर सरकारी आर्थिक संगठन है जिसमें दुनिया की सात सबसे बड़ी IMF द्वारा बतायी गयीं विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं. G-7 की स्थापना सन 1975 में 6 विकसित देशों (फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) ने की थी यह समूह आर्थिक विकास एवं संकट प्रबंधन, वैश्विक सुरक्षा, ऊर्जा एवं आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर आमसहमति को बढ़ावा देने के लिए सालाना बैठक का आयोजन करता हैं। ये देश दुनिया के सबसे अधिक औद्योगिक गतिविधियों वाले देश हैं । G–7 का पहला शिखर सम्मेलन नवंबर 1975 में पेरिस के नजदीक रैमबोनीलेट (Rambonilet) में आयोजित किया गया था। वर्ष 2018 में G– 7 समूह के सदस्य देशों का वैश्विक निर्यात में 49%, विश्व की जीडीपी का 46% और दुनिया के कुल धन के 58% का मालिक है. औद्योगिक आउटपुट में 51% और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के परिसंपत्तियों में 49% हिस्सेदारी है।

 

वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये वार्षिक तौर पर संगठन के सदस्य देशों की बैठक आयोजित की जाती है। यह व्यापार, कश्मीर मुद्दे और रूस तथा ईरान के साथ भारत के संबंधों पर G-7 सदस्यों से विचार-विमर्श करने के लिये एक बेहतर मंच उपलब्ध कराता है। G-7 संगठन का कोई औपचारिक संविधान और स्थायी मुख्यालय नहीं है। वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान लिये गए निर्णय सदस्य देशों पर गैर-बाध्यकारी होते हैं।

 

G– 6 फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका से बना था। इसके बाद 1976 में इस समूह में कनाडा के शामिल होने के बाद यह G– 7 और 1998 में रूस के शामिल होने पर G– 8 बन गया. विभिन्न समयों पर G-7 का नाम G-8 भी हो जाता है अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इसका विस्तार करके G-10 या G-11 बनाना चाहते हैं जिसमें भारत भी शामिल होगा. और इसमें भारत,ऑस्ट्रेलिया, रूस और दक्षिण कोरिया को शामिल होने के बाद इसके G-11 होने आसार हैं.  हालाँकि रूस को वर्ष 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद समूह से निष्कासित कर दिये जाने के पश्चात् समूह को एक बार पुनः G-7 कहा जाने लगा।

 

 

G7-summit

 

 

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G-7 शिखर सम्मेलन

 

G-7 शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है और समूह के सदस्यों द्वारा रोटेशन के आधार पर इस सम्मेलन की मेज़बानी की जाती है। शिखर सम्मेलन में होने वाली चर्चा के विषय और अनुवर्ती बैठकों समेत लगभग सभी मामले ‘शेरपा’ द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं, जो कि आमतौर पर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले नेताओं के प्रतिनिधि अथवा राजनयिक स्टाफ के सदस्य होते हैं।सम्मेलन के दौरान यूरोपीय संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया जाता है। अन्य आमंत्रित देश भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को भी ‘अतिथि देशों’ के रूप में शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिये आमंत्रित किया गया है।

 

ब्रिटेन, भारत और G7

 

ब्रिटेन, भारत के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सीट का समर्थन करने वाला पहला P5 (सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी देश) सदस्य और वर्ष 2005 में G7 शिखर सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करने वाला पहला G7 सदस्य देश था।

 

चुनौतियाँ और चिंताएँ

 

G-7 सदस्य देशों के बीच आंतरिक तौर पर कई असहमतियाँ मौजूद हैं, उदाहरण के लिये आयात पर लगने वाले कर और जलवायु परिवर्तन से संबंधित कार्यवाहियों को लेकर अमेरिका और अन्य सदस्य देशों के बीच विवाद। वैश्विक स्तर पर मौजूदा राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति को सही ढंग से प्रतिबिंबित न कर पाने की वजह से संगठन की आलोचना की जाती है।

 

प्रतिनिधित्व का अभाव

 

अफ्रीका, लैटिन अमेरिका या दक्षिणी गोलार्द्ध का कोई देश G-7 संगठन का सदस्य नहीं है। यह अंतर-सरकारी संगठन विश्व की अन्य तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे- भारत और ब्राज़ील आदि से चुनौतियों का सामना कर रहा है। वर्ष 1999 में वैश्विक आर्थिक चिंताओं से निपटने और अधिक देशों को एक साथ लाने के लिये G-20 समूह का गठन किया गया था।

 

भारत और G-7

 

वर्ष 2019 में फ्रांँस में आयोजित 45वें G-7 शिखर सम्मेलन में भारत की हिस्सेदारी एक प्रमुख आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में भारत की रणनीतिक स्थिति को प्रतिबिंबित करती है।

 

वर्ष 2020 में अमेरिका द्वारा भी भारत को शिखर सम्मेलन के लिये आमंत्रित किया गया था, हालाँकि यह सम्मेलन महामारी के कारण नहीं हो सका।

 

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल के दौरान भी भारत ने पाँच बार G-7 (तत्कालीन G-8 समूह) के सम्मेलनों में भाग लिया था।

 

भारत के लिये G-7 का निहितार्थ हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, ब्रिक्स और G-20 आदि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में हिस्सेदारी के साथ भारत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से एक बेहतर वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

 

G7 शिखर सम्मेलन 2022 का एजेंडा

 

इस दौरान पहली घोषणाओं में से एक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए $600 बिलियन की बुनियादी पहल की है अर्थात अंतरराष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के फ़ंड की घोषणा की हैl इस पहल को चीन के बड़े पैमाने पर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए पश्चिम की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है. आधिकारिक बयान के अनुसार G7 शिखर सम्मेलन 2022 का एजेंडा विकासशील देशों के लिए साझेदारी, वैश्विक अर्थव्यवस्था, स्थिरता, बहुपक्षवाद, खाद्य सुरक्षा और डिजिटल परिवर्तन जैसे विषय पर ध्यान केन्द्रित करना होगा. इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि यह कोई सहायता या दान नहीं बल्कि एक निवेश है. जो कि न केवल हमारे देश बल्कि दुनियाँ भर के लोगों के लिए एक बड़ा  रिटर्न प्रदान करेगा. उन्होंने कहा कि इससे हमारी सभी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा मिलेगा.

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