तिब्बत और दलाई लामा
उल्लेखनीय है कि चीन अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता को लेकर सदैव ही काफी संवेदनशील रहा है। तिब्बत पर भारत का शुरुआती पक्ष और भारत द्वारा दलाई लामा को शरण देना ऐतिहासिक रूप से चीन के लिये चिंता का विषय रहा है। वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहाँ अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी और पंडित नेहरू ने उस समय तिब्बत की स्वतंत्रता का पक्ष लिया था। चीन दलाई लामा (जिनका तिब्बतियों पर गहरा प्रभाव है) को अलगाववादी मानता है। तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास में भारत की भूमिका को लेकर चीन का रवैया हमेशा से आलोचनात्मक रहा है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय निकायों और मानवाधिकार समूहों ने भारत के इस कदम की प्रशंसा की है।
सीमा विवाद
भारत और चीन के मध्य अक्साई चिन तथा अरुणाचल प्रदेश में सीमा विवाद भी है। दोनों ही देश दोनों क्षेत्रों पर अपना-अपना दावा प्रस्तुत करते हैं, ज्ञातव्य है कि वर्तमान में अक्साई चिन, चीन के पास है, जबकि अरुणाचल प्रदेश भारत के पास। मई 2015 में जब भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा किया था, तो उनका एक मुख्य उद्देश्य चीन के शीर्ष नेतृत्व को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के स्पष्टीकरण पर चर्चा करने के लिये आमंत्रित करना भी था।
जल विवाद
भारत और चीन के बीच जल विवाद मुख्य रूप से ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित है जो दोनों देशों से होकर बहती है।बीते कुछ वर्षों में कई बार ऐसी खबरें सामने आती रही हैं कि चीन, तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को रोकने के उद्देश्य से बांध का निर्माण कर रहा है और यदि ऐसा होता है तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, यही दोनों पक्षों के मध्य विवाद का एक बड़ा कारण बना हुआ है।
दक्षिण चीन सागर का मुद्दा
चीन, दक्षिण चीन सागर के 90 प्रतिशत हिस्से को अपना मानता है। यह एक ऐसा समुद्री क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक तेल और गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं चीन, ताइवान और वियतनाम स्प्राटल द्वीपसमूह पर अपनी दावेदारी जताते रहे हैं। विदित हो कि स्प्राटल, दक्षिण चीन सागर का दूसरा सबसे बड़ा द्वीपसमूह है। उल्लेखनीय है कि भारत वियतनाम के अनुरोध पर दक्षिण चीन सागर में तेल का अन्वेषण करता है और चीन हमेशा से भारत के इस कदम की आलोचना करता रहा है।
भारत और चीन- सहयोग क्षेत्र
दोनों देशों के मध्य प्रतिद्वंद्विता के बावजूद उन्होंने सांस्कृतिक स्तर पर काफी अच्छा सहयोग किया है, उल्लेखनीय है कि भारत में जन्मा बौद्ध धर्म चीन में काफी लोकप्रिय है। दोनों ही देश दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह ब्रिक्स (BRICS) का हिस्सा हैं। ध्यातव्य है कि वर्ष 2014 में ब्रिक्स नेताओं ने न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई (चीन) में है और इसके वर्तमान अध्यक्ष के वी कामथ (एक भारतीय) हैं। ज्ञातव्य है कि भारत चीन समर्थित एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक का संस्थापक सदस्य भी था।
भारत की विदेश नीति और चीन
भारत ने चीन से निपटने के लिये दोतरफा नीति अपनाई है। इस नीति के तहत एक ओर भारत चीन के साथ आर्थिक संबंधों को बनाए रखने और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर कूटनीतिक सहयोग को बढ़ाने के लिये ब्रिक्स, एससीओ (SCO) तथा रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय जैसे मंचों से लगातार जुड़ा हुआ है। इसके अलावा भारत ने अपनी सैन्य और निवारक क्षमताओं को बढ़ाने के प्रयासों को नीति के दूसरे पक्ष के रूप में कायम रखा है।
व्यापार घाटा- एक बड़ी चिंता
बीते दो दशकों में भारत और चीन के बीच व्यापार काफी तेज़ी से बढ़ा है और इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहाँ एक ओर वर्ष 2000 में चीन के साथ भारत का कुल व्यापार सिर्फ 3 बिलियन डॉलर था, वहीं वर्ष 2008 में यह बढ़कर 51.8 बिलियन डॉलर पहुँच गया। इस प्रकार चीन अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत के साथ व्यापार करने वाला सबसे बड़ा साझेदार बन गया। विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में दोनों देशों का कुल व्यापार 95.54 बिलियन डॉलर का था, परंतु इसमें भारत द्वारा कुल निर्यात मात्र 18.84 बिलियन डॉलर का था अर्थात् चीन ने भारत से जितना सामान खरीदा उससे पाँच गुना सामान बेचा। उल्लेखनीय है कि भारत का सबसे अधिक व्यापार घाटा भी चीन के साथ ही है, वर्ष 2018 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 57.86 बिलियन डॉलर का था।
धारा 370 और चीन
कश्मीर को लेकर चीन का कहना है कि इस विषय को संयुक्त राष्ट्र चार्टर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के रेज़ोल्यूशन और द्विपक्षीय समझौते के आधार पर सुलझाया जाना चाहिये। कुछ ही महीनों पूर्व जब जम्मू-कश्मीर की विशेषाधिकार संबंधी धारा 370 को निरस्त किया गया था, तब चीन का कहना था कि भारत ने चीन की संप्रभुता संबंधी चिंताओं का उल्लंघन किया है। चीन की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि वह लद्दाख पर अपने दावे को दोहरा रहा था। इसके अतिरिक्त हाल ही में चीन ने कश्मीर और धारा 370 का विषय संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी उठाया था और कहा था कि हम जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर अपनी नज़र बनाए हुए हैं।
चीन का हॉन्गकॉन्ग संकट और भारत
भारत का रुख चीन की हॉन्गकॉन्ग नीति के प्रति उदासीन रहा है। भारत ने कभी भी प्रदर्शनकारियों का समर्थन नहीं किया है, जबकि अन्य देश खुलकर हॉन्गकॉन्ग के लोगों का समर्थन करते रहे हैं। चीन के साथ भारत पहले से उपस्थित मतभेदों को बढ़ाना नहीं चाहता है किंतु चीन का रुख कश्मीर जैसे विभिन्न मुद्दों पर भारत विरोधी ही रहा है तथा वह हमेशा पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा रहा है। एक ओर चीन कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना चाहता है, वहीं स्वयं उईगर तथा हॉन्गकॉन्ग के मामले में अमानवीय रुख अख्तियार करता है। भारत को भी चीन के रुख के अनुसार ही अपनी नीति का निर्माण करना चाहिये। यदि चीन कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा होता है तो भारत को भी हॉन्गकॉन्ग का खुलकर समर्थन करना चाहिये।
वन बेल्ट वन रोड (OBOR) और भारत
वन बेल्ट वन रोड (OBOR) पहल चीन द्वारा प्रस्तावित एक महत्त्वाकांक्षी आधारभूत ढाँचा विकास एवं संपर्क परियोजना है जिसका लक्ष्य चीन को सड़क, रेल एवं जलमार्गों के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका और एशिया से जोड़ना है, परंतु भारत अब तक इस पहल में शामिल नहीं हुआ है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि चीन की OBOR पहल में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को भी शामिल कर लिया गया है। चूँकि CPEC गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़र रहा है जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है। अतः OBOR में शामिल होने का मतलब है कि भारत द्वारा इस क्षेत्र पर पाकिस्तान के अधिकार को सहमति प्रदान कर देना, जो भारत की संप्रभुता के लिये खतरा है। इसके अलावा OBOR वास्तव में चीन द्वारा परियोजना निर्यात (Project Export) का माध्यम है जिसके ज़रिये वह अपने विशाल विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग बंदरगाहों के विकास, औद्योगिक केंद्रों एवं विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) के विकास के लिये कर वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना चाहता है, जो कि दीर्घकाल में भारत के हित में नहीं होगा।
प्रश्न: भारत-चीन संबंधों की चर्चा करते हुए स्पष्ट कीजिये कि क्या लगातार बदल रहे भू-राजनीतिक परिदृश्य के कारण भारत को अपनी चीन संबंधी विदेश नीति की समीक्षा करने की आवश्यकता है?