वर्ष 2001 में पूर्व चीनी नेता ली फंग ने भारत की यात्रा की। वर्ष 2002 में पूर्व चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग जी ने भारत की यात्रा की। इस के बाद, वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमन्त्री वन चा पाओ के साथ चीन-भारत सम्बन्धों के सिद्धान्त और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय सम्बन्ध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय सम्बन्धों के विकास का निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया।
चीन के प्रधानमन्त्री वेन जियाबाओ ने 2005 और 2010 में भारत की यात्रा की। चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ 2006 में भारत आये थे। भारतीय प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सन 2008 में चीन की यात्रा की। चीन के प्रधानमन्त्री ली ख छ्यांग 2013 में भारत आये। इसके अलावा ब्रिक्स शिखर बैठक से जुड़ी दो बैठकें भी हुईं: डा. मनमोहन सिंह ने 2011 में सान्या, चीन का दौरा किया तथा राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने 2012 में नई दिल्ली का दौरा किया तथा एक यात्रा अक्टूबर, 2008 में असेम शिखर बैठक के सिलसिले में बीजिंग की हुई।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि भारत एवं चीन के मध्य प्राचीन काल से चली आ रही मैत्री आधुनिक काल में कई अस्थिर दौरों से गुजरती रही है। भारत और चीन का सीमा विवाद आज तक बना हुआ है। हालांकि इधर चीन व भारत के सम्बन्धों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के सम्बन्धों में कुछ अनसुलझी समस्याएँ रही हैं। चीन व भारत के बीच सब से बड़ी समस्याएँ सीमा विवाद और तिब्बत की हैं। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है। इस समय चीन व भारत अपने-अपने शान्तिपूर्ण विकास में लगे हैं। 21वीं शताब्दी के चीन व भारत प्रतिद्वन्दी हैं और मित्र भी।